Lok Sabha Election: हथकड़ी लगी तस्वीर से जार्ज फर्नांडिस को मिली मुजफ्फरपुर में जीत

5/15/2024 1:51:01 PM

 

पटनाः दिग्गज समाजवादी नेता और पूर्व रक्षा मंत्री दिवंगत जार्ज फर्नांडीस के हथकड़ी लगी पोस्टर पर लिखी अपील ‘ये जंजीर मेरे हाथ को नहीं, भारत के लोकतंत्र को जकड़ी है, मुजफ्फरपुर की जनता इसे अवश्य तोड़ेगी ने लोगों को उनका दीवाना बना दिया और वह 1977 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद होने के बाद भी चुनाव जीत गए।

जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म 03 जून 1930 को मैंगलोर में एक मैंगलोरियन कैथोलिक परिवार जॉन जोसेफ फर्नांडीस और एलिस मार्था फर्नांडिस के यहां हुआ था। जार्ज अपने छह भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। उनके नाम के पीछे भी बड़ी रोचक कहानी है। उनकी मां किंग ब्रिटेन के महाराज जार्ज पंचम की प्रशंसक थी इसलिए उन्होंने अपने पहले बेटे का नाम जॉर्ज रखा था। किंग जॉर्ज का जन्म भी 03 जून को ही हुआ था। मंगलौर में शुरुआती पढ़ाई करने के बाद फर्नांडिस को एक क्रिश्चियन मिशनरी में पादरी बनने की शिक्षा लेने भेजा गया, हालांकि चर्च में उनका मोहभंग हो गया और उन्होंने 18 साल की उम्र में चर्च छोड़ दिया और मुंबई चले गए। उसके बाद वह सोशलिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन आंदोलन के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे।

जॉर्ज फर्नांडिस ने वर्ष 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की टिकट पर दक्षिण मुंबई सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और कांग्रेस के दिग्गज नेता लगातार तीन बार के सांसद एस के पाटिल (सदाशिव कनोजी पाटिल) को पराजित किया। इसके बाद उनका राजनीतिक कद बढ़ गया और लोग उन्हें ‘जॉर्ज द जाइंट किलर' के नाम से बुलाने लगे लगे। हालांकि 1971 के चुनाव में जार्ज फर्नांडीज को दक्षिण मुंबई सीट से हार का सामना करना पड़ा था। ‘बड़ौदा डायनामाइट केस' मामले मे जार्ज को वर्ष 1976 में गिरफ्तार कर दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद किया गया था। आपातकाल के दौरान लोकनायक जय प्रकाश नारायण के अनुरोध पर जार्ज फर्नांडीस ने मुजफ्फरपुर संसदीय सीट से वर्ष 1977 का चुनाव लड़ने का फैसला किया। जेल में बंद जार्ज परचा दाखिल नहीं कर सकते थे। उनका परचा दाखिल करने के लिए उनकी पत्नी और सुषमा स्वराज पहुंची थी। दरअसल इमरजेंसी के दौरान सुषमा स्वराज के पति स्वराज कौशल बड़ौदा डायनामाइट केस में उलझे जॉर्ज फर्नांडिस के वकील थे। इसी केस के सिलसिले में सुषमा स्वराज भी जॉर्ज फर्नांडिस की डिफेंस टीम में शामिल हुईं थी। 1977 से पहले जॉर्ज मुजफ्फरपुर के लिए कोई पहचान नहीं रखते थे। मुजफ्फरपुर के नागरिकों ने उस वक्त तक जॉर्ज को देखा-सुना नहीं था। लोकसभा चुनाव के वक्त जनता से प्रत्याशी का परिचय कराने के लिए एक पोस्टर बनाया गया, जिसमें जॉर्ज फर्नांडीस के हाथों में हथकड़ी थी और वह अपने हाथो को उठाये हुये हैं। पोस्टर पर लिखी एक अपील ने मुजफ्फरपुर को जॉर्ज का दीवाना बना डाला, ये जंजीर मेरे हाथ को नहीं, भारत के लोकतंत्र को जकड़ी है, मुजफ्फरपुर की जनता इसे अवश्य तोड़ेगी।

जार्ज फर्नाडीस के हाथों में हथकड़ी लगी ब्लैक एंड वाइट तस्वीर से मुजफ्फरपुर को पाट दिया गया था। यह तस्वीर उस समय ली गई थी जब जॉर्ज को बड़ौदा डायनामाइट केस में तीस हजारी कोर्ट में पेश किया गया था। जब जॉर्ज की तीस हजारी कोर्ट में पेशी हो रही थी तो जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) और दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) के छात्र कोर्ट परिसर के बाहर खड़े थे। नारे लगाए जा रहे थे, जेल के दरवाजे तोड़ दो, जॉर्ज फर्नांडिस को छोड़ दो। कॉमरेड जॉर्ज को लाल सलाम। यहां से जॉर्ज नौजवानों के लिए विद्रोह का आइकॉन बन गए थे। जॉर्ज का चुनाव जन आंदोलन बन गया। उस समय नारा था ‘जेल का फाटक टूटेगा, जार्ज हमारा जीतेगा' जिसे सुषमा स्वराज ने लिखा था। चुनाव लड़ने के लिए पेरोल पर छोड़ने के जॉर्ज के अनुरोध को ठुकरा दिया गया। चुनाव प्रचार के लिए जॉर्ज की मां मुज़फ़्फ़रपुर गई। वह वहां अंग्रेज़ी में भाषण देती थीं, जिसका हिंदी में अनुवाद सुषमा स्वराज किया करती थीं। यह चुनाव तानाशाही बनाम लोकशाही के रूप में जाना जाता था। पूरे चुनाव के दौरान जार्ज एक बार भी अपने क्षेत्र में नहीं जा सके थे, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अप्रत्याशित तौर पर जीत हासिल की थी। वह यहां से करीब तीन लाख वोटों से जीते थे। सुषमा स्वराज ने प्रचार की कमान संभाली थी। सुषमा का चुनाव प्रचार एवं प्रभावशाली भाषण काफी चर्चित रहा।

चुनाव अभियान के दौरान शहर के मोतीझील, कल्याणी चौक सहित कई इलाकों में सुषमा ने नुक्कड़ सभाओं को संबोधित किया। उन्हें सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग इकट्ठे हुए। प्रचार के लिए जार्ज की मां,पत्नी लैला कबीर, जयप्रकाश नारायण, मोरार जी देसाई, बाबू जगजीवन राम जैसे कई दिग्गज पहुंचे थे। जार्ज की अपील जन आंदोलन बन गया। भारतीय लोक दल उम्मीदवार जार्ज ने कांग्रेस के दिग्गज नीतीश्वर प्रसाद सिंह को तीन लाख 34 हजार 217 मतों से पराजित किया था। जब चुनाव परिणाम आया तो जॉर्ज उस समय भी दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद थे। मुज़फ़्फ़रपुर में जो मतगणना हो रही है, उसकी ख़बर जार्ज को कैसे मिले? जेल के एक डॉक्टर हुआ करते थे। जार्ज ने उनसे कहा था आप अकेले शख़्स हैं, जो रात में 10-11 बजे यहां आ सकते हैं। हम पर एक कृपा करिए कि जब आप रात को आएं तो पता लगाते आएं कि मुज़फ्फरपुर में कौन ‘लीड' कर रहा है। डॉक्टर 11 बजे आए और आकर जार्ज को बताया कि वह एक लाख वोट से ‘लीड' कर रहे हैं। सुबह साढ़े चार बजे ‘वॉयस ऑफ़ अमेरिका से जार्ज ने सुना कि इंदिरा गांधी के चुनाव एजेंट ने फिर से मतगणना की मांग की है। दोबारा मतगणना करवाने की मांग तो हारने वाला उम्मीदवार ही करता है न कि जीतने वाला। पूरी जेल में एक तरह से दिवाली का माहौल हो गया। इंदिरा गांधी की हार के बाद जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी तो आपातकाल के दौरान दर्ज सभी मामलों को वापस ले लिया गया और सभी आरोपियों को रिहा कर दिया गया था। जार्ज मोरारजी देसाई के मंत्रिमंडल में संचार मंत्री के तौर पर शामिल हुए और कुछ महीनों बाद उन्हें उद्योग मंत्री बना दिया गया।

मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट में पहली बार 1957 में लोकसभा का चुनाव हुआ था। इस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार मुजफ्फरपुर के बाघी स्टेट के जमींदार श्यामनंदन सहाय ने जीत हासिल की लेकिन जीत का प्रमाणपत्र लेने से पहले ही वह दुनिया छोड़कर चले गए। वह बिहार विश्वविद्याल के पहले कुलपति भी थे। डॉ. श्याम नंदन सहाय 1947 से 1950 तक संविधान सभा के सदस्य भी रहे। इससे पूर्व सहाय ने वर्ष 1952 में मुजफ्फरपुर सेंट्रल से जीत हासिल की थी। डॉ. सहाय के निधन के बाद हुए उपचुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के अशोक मेहता ने जीत हासिल की। वर्ष 1962 में कांग्रेस प्रत्याशी वैशाली के धरहरा स्टेट के जमींदार और आधुनिक बिहार के दानवीर, महापुरुष बाबू लंगट सिंह के पौत्र दिग्विजय नारायण सिंह ने जीत हासिल की। इससे पूर्व सिंह ने वर्ष 1952 में मुजफ्फरपुर नार्थ ईस्ट, वर्ष 1957 में पुपरी से जीत हासिल की थी।

मुजफ्फरपुर में लाल किला कहे जाने वाले लंगट सिंह कॉलेज (एलएसकॉलेज) की स्थापना तीन जुलाई 1899 को लंगट सिंह ने की थी। यह बिहार के सबसे पुराने कॉलेजों में से एक है। लाल रंग की इमारत होने के कारण इसे लोग मुजफ्फरपुर का लाल किला भी कहते थे। भारत रत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर इस कॉलेज में प्रोफेसर के तौर पर शुरुआती समय में पढ़ाते थे। एलएस कॉलेज में संकाय सदस्यों के रूप में प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, आचार्य जेबी कृपलानी, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, एचआर मलकानी, एचआर घोषाल, वाईजे तारापोरवाला, डॉ. एफ रहमान, डब्ल्यू ऑस्टिन स्मिथ, आरपी खोसला, डॉ. डीएन चौधरी आदि शामिल रहे हैं। वर्ष 1967 में कांग्रेस उम्मीदवार दिग्विजय नारायाण सिंह ने फिर चुनाव जीता। 1971 में कांग्रेस के नवल किशोर सिन्हा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। इस चुनाव में सिन्हा ने दिग्गज नेता भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (संगठन-एनसीओ) प्रत्याशी महेश प्रसाद सिंह को पराजित किया था। इसके बाद जॉर्ज फर्नाडिस ने 1977 में भारतीय लोकदल और 1980 में जनता पार्टी (सेक्यूलर) पार्टी के टिकट से जीत दर्ज की थी।

वर्ष 1980 में जार्ज ने कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय नारायण सिह को पराजित किया। वर्ष 1984 में कांग्रेस के ललितेश्वर प्रसाद शाही ने लोकदल के जय नारायण निषाद को पराजित किया। शाही बिहार की कई सरकार में शिक्षा, सिंचाई, सहकारिता, कृषि, स्वास्थ्य, पंचायत, आपूर्ति, खनन, उद्योग, ट्रांसपोर्ट, जन संपर्क समेत कई विभागों के मंत्री थे। वह राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में केंद्रीय शिक्षा एवं संस्कृति राज्य मंत्री रहे हैं। शाही के पुत्र हेमंत शाही और बहू वीणा साही भी विधायक रही है। वर्ष 1984 में जार्ज ने बेंगलौर नॉर्थ से चुनाव लड़ा लेकिन कामयाबी नहीं मिली। वर्ष 1989 में जनता दल के जार्ज फर्नांडीस ने कांग्रेस प्रत्याशी ललितेश्वर प्रसाद शाही को शिकस्त दी। इसी दौरान जार्ज विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह) की सरकार में कुछ सालों के लिए रेलमंत्री बने। वर्ष 1991 में जनता दल प्रत्याशी जार्ज ने कांग्रेस प्रत्याशी रघुनाथ पांडे को मात दे दी। जॉर्ज और नीतीश ने वर्ष 1994 में कुल 14 सांसदों को लेकर जनता दल से अलग होकर जनता दल (जॉर्ज) बनाया। अक्टूबर में इसका नाम समता पार्टी कर दिया। वर्ष 1996 में जनता दल के जयनारायण निषाद ने जीत हासिल की। वर्ष 1998 में भी राजद के कैप्टन जय नारायण निषाद ने जीत हासिल की।

जार्ज ने वर्ष 1996, 1998 और 1999 में नालंदा संसदीय सीट से चुनाव जीता। वर्ष 1998 के चुनाव में वाजपेयी सरकार पूरी तरह सत्ता में आई और उसी दौरान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का गठन हुआ और जॉर्ज फर्नांडीस राजग के संयोजक बने। जॉर्ज फर्नांडिस ने राजग के शासन काल में 1998 से 2004 तक रक्षा मंत्री का पद संभाला था। पाकिस्तान के साथ कारगिल युद्ध और पोखरण में न्यूक्लियर टेस्ट के दौरान फर्नांडिस ही रक्षा मंत्री थे। जॉर्ज फ़र्नांडिस को तहलका मामले के सामने आने के बाद रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था। वर्ष 1999 में मुजफ्फरपुर में जदयू के जय प्रकाश नारायण निषाद ने राष्ट्रीय जनता दल के महेन्द्र सहनी को पराजित किया। नीतीश ने जॉर्ज के साथ मिलकर जनता दल यूनाईटेड बनाई।

जार्ज फर्नाडीस राष्ट्रीय अध्यक्ष बनें। वर्ष 2004 में जदयू उम्मीदवार जार्ज फर्नांडीस ने जीत हासिल की। वर्ष 2007 में नीतीश कुमार ने जॉर्ज फर्नांडिस को पार्टी अध्यक्ष पद से हटा दिया। शरद यादव जदयू अध्यक्ष बनाए गए। वर्ष 2009 में जदयू के जय नारायाण निषाद ने फिर जीत हासिल की। इस चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी जार्ज को बहुत बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। यह जार्ज का अंतिम चुनाव था। लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के भगवान लाल सहनी दूसरे, पूर्व केन्द्रीय मंत्री ललित विजय सिंह की पुत्री और पूर्व मंत्री रघुनाथ पांडे की बहू कांग्रेस प्रत्याशी विनीता विजय तीसरे, विजेन्द्र चौधरी चौथे जबकि जार्ज पांचवें नंबर पर रहे। वर्ष 2009 और 2010 के दौरान जार्ज बिहार से राज्यसभा के सदस्य रहे। वर्ष 2014 में कैप्टन जयनारायण निषाद के पुत्र भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रत्याशी अजय निषाद ने कांग्रेस के अखिलेश प्रसाद सिंह (वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष) को पराजित किया। जदयू प्रत्याशी विजेन्द्र चौधरी तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 2019 में भाजपा के अजय निषाद ने महागठबंधन में शामिल विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के राजभूषण चौधरी निषाद को पराजित कर दिया।

मुजफ्फरपुर संसदीय सीट पर सर्वाधिक पांच बार जार्ज फर्नांडीस ने जीत हासिल की है। उन्होंने यहां के विकास के लिये कई काम किए। कांटी थर्मल पावर, मधौल पावर ग्रिड, मालगाड़ी बनाने वाले भारत वैगन उद्योग और बगहा-छितौनी रेल पुल की स्थापना उनकी देन है। वर्ष 1977 में जार्ज के प्रयास से इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड (आइडीपीएल) की स्थापना हुई थी। यहां की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए वर्ष 1978 में लिज्जत पापड़ की इकाई उनके प्रयास से स्थापित हुई। बेला औद्योगिक क्षेत्र एवं दूरदर्शन केंद्र के अलावा अन्य संस्थान स्थापित कर उन्होंने मुजफ्फरपुर को मिनी मुंबई बनाने की कोशिश की। दूरदर्शन केन्द्र मुजफ्फरपुर, बिहार का प्रथम दूरदर्शन केन्द्र है। इसका उद्घाटन तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी के कर कमलों से दिनांक 14 जून 1978 को हुआ था। जयप्रकाश नारायण के अनुयायी समाजवाद के प्रखर नेता, समता पार्टी और जदयू के संस्थापक, मजदूरों के मसीहा, पोखरण परमाणु परीक्षण के वक़्त अटल बिहारी वाजपेयी के कमांडर, आपातकाल के प्रतिरोध के प्रतीक, देश के पूर्व रक्षा मंत्री, रेल मंत्री और उद्योग मंत्री समेत अनेकों पद को सुशोभित करने वाले जार्ज फर्नांडिस का निधन 29 जनवरी 2019 को हो गया।

मुजफ्फरपुर की लहठी की चूड़ी बेहद खास मानी जाती है। कई सितारों ने वेडिंग में ट्राई किया है। विदेशों में भी है इसकी डिमांड है। लीची अनुसंधान केन्द्र भी यहां है। मुजफ्फरपुर अपने शाही लीची की मिठास के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। वहीं मुजफ्फरपुर का रक्त रंजित इतिहास भी रहा है। कौशलेंद्र कुमार शुक्ला उर्फ छोटन शुक्ला, गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी. कृष्णैया, पूर्व मेयर समीर कुमार ,भुटकुन शुक्ला, मिनी नरेश, चंदेश्वर सिंह की हत्या ने सियासी गलियारों में सनसनी फैला दी। पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद, पूर्व विधायक हेमंत शाही हत्याकांड के तार भी मुजफ्फरपुर से जुड़े हुए थे। नवरूणा हत्याकांड भी सुखिर्यों में रहा। मुजफ्फरपुर क्रांतिकारी खुदीराम बोस, साहित्यकार देवकी नंदन खत्री, रामबृक्ष बेनीपुरी, जानकी वल्लभ शास्त्री की कर्म स्थली रही है। खुदी राम बोस ने अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देते हुए 30 अप्रैल 1908 को मुजफ्फरपुर क्लब के सामने बम विस्फोट किया था। यह विस्फोट दमनकारी जज किंग्सफोर्ड को मौत की घाट उतारने के लिए किया गया था। खुदी राम बोस गिरफ्तार कर लिए गए। 11 अगस्त 1908 को भारत माता के इस वीर सपूत ने मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया।

मुजफ्फरपुर संसदीय सीट से वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी अजय निषाद ने विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) उम्मीदवार राजभूषण चौधरी निषाद को पराजित किया था। इस बार के चुनाव में भाजपा ने अजय निषाद को बेटिकट कर दिया है, जिससे नाराज होकर निषाद ने भाजपा का साथ छोड़ इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (इंडिया गठबंधन) में शामिल कांग्रेस का ‘हाथ' थाम लिया है और चुनावी संग्राम में उतर आए हैं। वहीं, दूसरी तरफ भाजपा ने निषाद की जगह राजभूषण निषाद को प्रत्याशी बनाया है। राजभूषण वीआईपी छोड़ भाजपा में शामिल हुए हैं। वर्ष 2019 के चुनाव में निषाद और राजभूषण के बीच चुनावी टक्कर हुई थी। इस बार के चुनाव में भी दोनों प्रतिद्धंदी आमने-सामने हैं। एक ही जाति के उम्मीदवार होने के कारण मुजफ्फरपुर लोकसभा के निर्णायक वोट सवर्ण और मुस्लिम बनने जा रहे हैं। मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट पर निषाद परिवार का लंबे समय से कब्जा रहा है। जय नारायण निषाद मुजफ्फरपुर से चार बार और उनके पुत्र अजय निषाद दो बार सांसद बने हैं। अजय निषाद अपने पिता की विरासत संभालने इस बार भी चुनाव में है। अजय निषाद को अपने पिता के कार्यकाल की और खुद के 10 साल के अनुभव का लाभ मिल सकता है। कांग्रेस उम्मीदवार रहने के कारण उन्हें सवर्ण का भी मत मिलेगा। मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण के मत भी अजय निषाद के पक्ष में जा सकते है। वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी के निषाद समुदाय वोट अजय निषाद को मिल सकता है।

वहीं भाजपा प्रत्याशी राजभूषण निषाद चौधरी को मोदी इंपैक्ट के असर का लाभ मिल सकता है। नीतीश कुमार और चिराग पासवान के इफेक्ट से पिछड़ा वोट और दलित वोट की प्राप्ति उन्हें हो सकती है। भाजपा के प्रभाव से उन्हें वैश्य और सवर्ण मत का साथ मिल सकता है। मुजफ्फरपुर में मुस्लिम और सवर्ण के साथ अतिपिछड़ा वर्ग निर्णायक होगा।दूसरा बड़ा फैक्टर सवर्ण मतदाताओं का है। ये भाजपा के साथ रहते हैं या कांग्रेस की तरफ भी जाता है। अतिपिछड़ा का वोट भी निर्णायक हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुजफ्फरपुर में राजभूषण चौधरी निषाद के पक्ष में चुनावी सभा को संबोधित किया है। उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा कि 10 सालों में हर क्षेत्र में विकास के कार्य हुए हैं। यदि तीसरी बार भी मौका मिलेगा तो विकास की गति और रफ्तार मिलेगी। वहीं कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और विकासशील इंसान पार्टी प्रमुख मुकेश सहनी ने अजय निषाद के पक्ष में प्रचार किया है। मुजफ्फरपुर सीट पर पिछले 20 सालों से जदयू और भाजपा का दबदबा रहा है। वर्ष 1999 से लेकर 2019 तक पांच आम चु्नावों में तीन बार जदयू और दो बार भाजपा को जीत मिली। 1999, 2004 और 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में राजग की तरफ से यहां जदयू अपना प्रत्याशी उतारा और तीनों बार उसे जीत मिली। 2014 में जदयू, राजग से अलग थी और भाजपा ने पहली बार इस सीट से अपना उम्मीदवार खड़ा किया था।

मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से इस बार एक रोचक आंकड़ा जुड़ गया है। भाजपा और अजय निषाद में से किसी एक की हैट्रिक लगनी तय है। अजय निषाद चुनाव जीतते हैं तो उनकी हैट्रिक होगी। वहीं यदि राजभूषण निषाद चुनाव जीतते हैं तो भाजपा की हैट्रिक जीत कहलाएगी। अजय निषाद के हैट्रिक लगने के सवाल पर कहा है कि अब यह जनता तय करेगी। मैं मुजफ्फरपुर से लगातार दो बार सांसद रहा हूं, पिछले चुनाव में मैं बिहार में सबसे ज्यादा वोटों से जीतने वाले सांसदों में से एक था, लेकिन इस बार पार्टी ने ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया, जो दूसरी पार्टी से आया था और जिसे मैंने पिछले चुनाव में चार लाख से ज्यादा वोटों से हराया था। मुझे पूरा भरोसा है कि मुजफ्फरपुर की जनता मेरा साथ देगी। भाजपा उम्मीदवार राजभूषण चौधरी ने कहा कि लोकसभा चुनाव की यह लड़ाई कोई सामान्य लड़ाई नहीं, बल्कि धर्मयुद्ध है। पीएम मोदी धर्म की लड़ाई लड़ते हैं और धर्म हमेशा से जीता है। पीएम मोदी के जीत रथ को रोक नहीं सकता है।

मुजफ्फरपुर संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की छह सीटें आती हैं, जिनमें गायघाट, औराई, बोचहा (सु), सकरा (सु), कुढ़नी और मुजफ्फरपुर सीट शामिल है। गायघाट और बोचहां में राजद, औराई और कुढ़नी में भाजपा, सकरा में जदयू और मुजफ्फरपुर में कांग्रेस का कब्जा है। मुजफ्फरपुर संसदीय सीट से भाजपा, कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन समेत 26 प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। कहीं न कहीं मतदाता भी अजय निषाद और राजभूषण चौधरी को लेकर ऊहापोह की स्थिति में है, क्योंकि चुनावी मैदान में पिछली बार मतदाताओं ने जिसका विरोध किया था उसे समर्थन करना है और जिसका समर्थन किया था उसका विरोध करना है। अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि मुजफ्फरपुर संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की ओर से विजय की वरमाला किसे हासिल होगा।


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Content Writer

Nitika

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