एक बेटा अपने पिता के अधूरे सपनों को करेगा पूरा तो वहीं एक बेटा पिता की बेइज्जती का लेगा बदला, आखिरकार किसका बदला होगा पूरा
Friday, Oct 17, 2025-12:29 PM (IST)

जमशेदपुर: झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार घाटशिला सीट पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव में अपने-अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आधार बनाकर मैदान में उतरे हैं। पहली बार चुनावी राजनीति में कदम रखने वाले झामुमो उम्मीदवार सोमेश चंद्र सोरेन ने अपने पिता और झारखंड के शिक्षा मंत्री रहे रामदास सोरेन के “अधूरे सपनों” को पूरा करने का संकल्प जताया है। वहीं, भाजपा प्रत्याशी बाबूलाल सोरेन का दांव भी अपने पिता और पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन की विरासत पर टिका हुआ है। चंपई को ‘कोल्हान टाइगर' के रूप में जाना जाता है। यह उपनाम उन्हें झारखंड राज्य आंदोलन के दौरान कोल्हान क्षेत्र (पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां जिलों) में उनकी सक्रिय भूमिका के लिए दिया गया था।
आठ बार विधायक रह चुके चंपई ने झामुमो से दशकों पुराना नाता तोड़कर पिछले साल भाजपा का दामन थाम लिया था। वहीं, सोमेश ने कहा, “घाटशिला के लिए मेरी प्राथमिकता मेरे पिता के अधूरे सपनों को साकार करना है। मेरे बाबा (रामदास सोरेन) हमेशा घाटशिला को एक शैक्षणिक केंद्र के रूप में विकसित करने की बात करते थे।” उन्होंने बताया कि पूर्वी भारत के पहले जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रस्ताव पहले ही मंजूर हो चुका है और अगर वह चुनाव जीतते हैं, तो गालूडीह में इसका निर्माण कार्य शीघ्र पूरा कराने की दिशा में काम करेंगे। सोमेश ने कहा, “बाबा अपने क्षेत्र में मेडिकल, नर्सिंग और फार्मेसी कॉलेज खोलने को लेकर बेहद उत्साहित थे। इससे न केवल रोजगार के अवसर सृजित होंगे, बल्कि लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं भी मिलेंगी।” उन्होंने दावा किया कि घाटशिला के तांबे क्षेत्र में कामगारों का पलायन सबसे बड़ी समस्या है। सोमेश ने कहा, “हेमंत सोरेन सरकार तांबे की खदानों के पट्टे के नवीनीकरण पर काम कर रही है। तांबे की खदानों के फिर से शुरू होने से युवाओं का पलायन रुकेगा।” उन्होंने कहा कि वह खेलों, खासकर फुटबॉल और तीरंदाजी को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। सोमेश ने कहा, “मैं इस क्षेत्र में तीरंदाजी अकादमी स्थापित करना चाहता हूं।”
वहीं, बाबूलाल सोरेन लगातार दूसरी बार घाटशिला से चुनाव लड़ रहे हैं। 2024 के विधानसभा चुनाव में उन्हें रामदास सोरेन ने लगभग 22,000 मतों से हराया था। हालांकि, इस बार वह घाटशिला के विकास के लिए अपने पिता की ओर से चलाए गए आंदोलन को ढाल बनाकर मैदान में उतरे हैं। बाबूलाल ने कहा, “संथाल परगना से घाटशिला तक बांग्लादेशी घुसपैठिये आदिवासियों की जमीन और सरकारी व वन भूमि पर कब्जा कर रहे हैं। वे हमारी बहनों से विवाह कर सामाजिक व्यवस्था को खराब कर रहे हैं। यह चुनाव बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर सरकार की तुष्टीकरण नीति के खिलाफ एक लड़ाई है।” उन्होंने दावा किया कि जनता का हेमंत सोरेन सरकार से भरोसा उठ गया है। बाबूलाल ने कहा, “सरकार ने रांची के नगड़ी इलाके में आदिवासियों और किसानों की जमीन बिना अधिग्रहण के छीनने की कोशिश की थी। मेरे पिता (चंपई सोरेन) ने इसके खिलाफ आंदोलन शुरू किया और उन्हें जनता का जो समर्थन मिल रहा है, वह दिखाता है कि लोगों का विश्वास इस सरकार से उठ चुका है।” उन्होंने कहा, “क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क जैसी सुविधाओं की भारी कमी है। युवाओं को रोजगार और स्व-रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना मेरी प्राथमिकता होगी।” भाजपा नेता ने दावा किया कि “युवाओं, किसानों और आदिवासियों के खिलाफ काम करने वाली इस भ्रष्ट सरकार” के प्रति जनता में व्यापक असंतोष है और घाटशिला की जनता उपचुनाव में इसका जवाब देगी।