शरद यादव की JDU में घर वापसी की चर्चा, यादव वोटरों के गुस्से को कम करना चाहते हैं नीतीश

9/2/2020 11:48:37 AM

 

पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जेडीयू और आरजेडी में एक-दूसरे को मात देने के लिए रणनीतिक विचार विमर्श चल रहा है। लालू यादव और नीतीश कुमार ना केवल दो दिग्गज नेता हैं बल्कि दो अलग-अलग शख्सियत भी हैं और दो अलग-अलग सोच के सिंबल भी हैं। इसलिए विधानसभा चुनाव से पहले दोनों धुरंधर सन ऑफ द स्यॉल एक दूसरे की कमजोर नब्ज को छूने की कोशिश कर रहे हैं। एक तरफ नीतीश कुमार खुद को सर्वसमाज का नेता मानते हैं तो दूसरी तरफ लालू यादव की निर्भरता ज्यादातर माय समीकरण पर है। अब नीतीश कुमार यादव वोट बैंक के गुस्से को शांत करना चाहते हैं ताकि यादव समाज उनके खिलाफ एग्रेसिव वोटिंग ना करे। अपने मकसद को हासिल करने के लिए नीतीश कुमार की नजर अलग थलग पड़े शरद यादव पर है। अचानक से इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि आने वाले वक्त में शरद यादव की नीतीश खेमे में घर वापसी हो सकती है।
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बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जेडीयू और आरजेडी में एक-दूसरे को मात देने के लिए जोर आजमाइश चल रही है। लालू यादव और नीतीश कुमार ना केवल दो दिग्गज नेता हैं बल्कि दो अलग-अलग शख्सियत हैं और दो अलग-अलग सोच के सिंबल भी हैं। इसलिए विधानसभा चुनाव से पहले दोनों धुरंधर सन ऑफ द स्यॉल एक दूसरे की कमजोर नब्ज को छूने की कोशिश कर रहे हैं। एक तरफ नीतीश कुमार खुद को सर्वसमाज का नेता मानते हैं तो दूसरी तरफ लालू यादव की निर्भरता ज्यादातर माय समीकरण पर है। अब नीतीश कुमार, यादव वोट बैंक के गुस्से को शांत करना चाहते हैं ताकि यादव समाज उनके खिलाफ एग्रेसिव वोटिंग ना करे। अपने मकसद को हासिल करने के लिए नीतीश कुमार की नजर अलग-थलग पड़े शरद यादव पर टिक गई है। अचानक से इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि आने वाले वक्त में शरद यादव की नीतीश खेमे में घर वापसी हो सकती है।

आपको ये तो पता होगा ही कि हर कहानी के पीछे इतिहास होता है। शरद यादव का जेडीयू से रिश्ता तोड़ने के पीछे एक बड़ी वजह रही है। इसके लिए हमें 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त की कुछ घटनाओं को याद करना होगा। दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाए जाने के बाद शरद यादव ने एनडीए को अलविदा कह दिया था। वहीं बिहार में नीतीश कुमार और लालू यादव को साथ लाने में शरद यादव ने अहम भूमिका निभाई थी। शरद बाबू और नीतीश कुमार के विरोध के बावजूद नरेंद्र मोदी की गाड़ी चल निकली और वे प्रधानमंत्री के गद्दी पर जा बैठे। बदलते वक्त को नीतीश कुमार ने भांप लिया और अचानक ही यू टर्न लेकर लालू यादव से गठबंधन तोड़ दिया। बीजेपी ने भी गिला शिकवा भूल कर फौरन नीतीश कुमार के साथ गठबंधन कर लिया, नीतीश कुमार के यू टर्न से शरद यादव सहमत नहीं दिखे और उन्हें इसकी कीमत पार्टी से बाहर जाकर चुकानी पड़ी। इस बीच 2019 के लोकसभा चुनाव में भी नरेंद्र मोदी का विजय रथ तेजी से विपक्षियों को रौंदते हुए निकल गया और इस रथ में बैठे नीतीश कुमार भी पूरे मुनाफे में रहे। वहीं धीरे धीरे देश और प्रदेश की सियासत में शरद यादव की ताकत सिमटती चली गई।
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नीतीश कुमार,बीजेपी और लोजपा की मिली जुली गठजोड़ ने 2019 के लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप कर दिया था। इसके बाद से शरद यादव हाशिए पर चले गए और लालू यादव ने उनकी पार्टी के विलय की बात को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया।

वैसे राज्यसभा में भी शरद यादव की सदस्यता 2022 तक बनी रहेगी लेकिन जेडीयू ने अधिकारिक तौर पर राज्यसभा के सभापति के पास शिकायत दर्ज कराई। हालांकि इस मामले में अब तक सुनवाई आगे नहीं बढ़ पाई है और शरद यादव की सदस्यता पर कोई अंतिम फैसला भी नहीं हुआ है। अब चारों तरफ से मिल रही निराशा और राज्यसभा की सदस्यता बचाने के लिए शरद यादव घर वापसी कर सकते हैं। वैसे भी अगर अब शरद बाबू को केंद्र की राजनीति करनी है तो उन्हें नया विकल्प तलाशना ही होगा। इसलिए सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा ने जोर पकड़ ली है कि शरद यादव जेडीयू में वापस आ सकते हैं। अगर शरद यादव जेडीयू में वापसी करते हैं तो ना केवल उनकी राज्यसभा की सदस्यता बच जाएगी, बल्कि एक बार फिर वे राजनीति में मजबूती से सक्रिय हो जाएंगे।
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वहीं शरद बाबू के मन बदलने के पीछे एक बड़ी वजह ये भी है कि लालू प्रसाद उन्हें ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे हैं। शरद यादव दो बार लालू यादव से रिम्स में मुलाकात कर चुके हैं, लेकिन लालू प्रसाद उनकी बात पर अमल नहीं कर रहे हैं। वैसे भी राज्यसभा चुनाव के दौरान भी लालू ने शरद यादव को तरजीह नहीं दी थी। इस परिस्थिति पर नीतीश कुमार की पैनी नजर बनी हुई है। अब विधानसभा चुनाव के पहले शरद यादव को जेडीयू में लाने के लिए नीतीश बाबू गंभीरता से कोशिश करने लगे हैं। बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार ने इसकी जिम्मेदारी ऊर्जा मंत्री विजेंद्र यादव को सौंपी है। ऐसे में ये सवाल उठता है कि आखिर नीतीश कुमार ये क्यों चाहते हैं कि शरद यादव उनके साथ आएं। इसके पीछे की भी एक खास वजह है। दरअसल नीतीश कुमार खुद को कभी किसी जाति के विरोधी नेता की छवि गढ़ने को पसंद नहीं करते हैं बल्कि वे हमेशा खुद को हर जाति का नुमांइदा बताते हैं,सुशासन बाबू किसी खास फ्रेम में बांध कर राजनीति नहीं करते। ये उनका एक अपना स्टाइल ऑफ स्टेट्समैनशिप है। इसलिए विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार, शरद यादव को पार्टी में शामिल करा कर बिहार के वोटरों को संकेत देना चाहते हैं कि सुशासन बाबू यादव विरोधी नहीं हैं।
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भले ही शरद यादव का जनाधार नहीं हो लेकिन वे समाजवादी और पिछड़ों की राजनीति के एक बड़े सिंबल तो हैं ही। अगर शरद यादव जेडीयू में शामिल होते हैं तो इससे नीतीश कुमार की छवि एक उदारवादी नेता की बनेगी और विधानसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव के बयानों को काउंटर करने के लिए शरद यादव को आगे करना आसान होगा। इससे आरजेडी का एजेंडा कमजोर पड़ सकता है। हालांकि शरद यादव पुरानी बातों को भूला कर घर वापसी करने के लिए तैयार होंगे। इस सवाल के जवाब के लिए सबको थोड़ा इंतजार करना होगा।
 


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Nitika

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