राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन 2025 में बिहार की गूँज: विविधीकरण, डिजिटलीकरण और सतत खेती से साकार होगा कृषि विकास का नया मॉडल
Tuesday, Sep 16, 2025-07:15 PM (IST)

पटना:उप मुख्यमंत्री-सह-कृषि मंत्री, बिहार विजय कुमार सिन्हा ने नई दिल्ली स्थित पूसा परिसर में आयोजित दो दिवसीय ‘राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन- वसन्तीय (रबी) अभियान 2025’ के अवसर पर बिहार राज्य की कृषि प्रगति, चुनौतियों और भविष्य की दिशा पर विस्तार से विचार रखे। उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत उपस्थित सभी प्रतिनिधियों का अभिनंदन करते हुए कहा कि बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है जहाँ 76 प्रतिशत जनसंख्या की जीविकोपार्जन का मुख्य साधन कृषि और इससे जुड़ी गतिविधियाँ हैं। राज्य के 90 प्रतिशत किसान छोटे और सीमांत श्रेणी के हैं, जिन्हें हमारी सरकार सर्वाेच्च प्राथमिकता के साथ सशक्त बनाने के लिए कार्य कर रही है। बिहार की उपजाऊ मिट्टी और मेहनती किसान राज्य की सबसे बड़ी ताकत हैं।
सिन्हा ने कहा कि कृषि जीडीपी वृद्धि और किसानों की आय बढ़ाने में बागवानी की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने फसल उपरांत प्रबंधन, भंडारण संरचनाओं के विकास और बागवानी क्षेत्र में स्टार्टअप्स तथा नवाचार को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया। इसी प्रकार प्रभावी प्रसार सेवाएँ एवं कृषि विज्ञान केंद्र (ज्ञटज्ञे) की भूमिका में उन्होंने कहा कि समन्वित प्रयासों से प्रसार सेवाओं की प्रभावशीलता कई गुना बढ़ाई जा सकती है। इसके लिए आवश्यक है कि कृषि विज्ञान केंद्रों की प्रशिक्षण क्षमता को मजबूत किया जाए, अनुसंधान स्थानीय आवश्यकताओं पर आधारित हो और तकनीक एवं परामर्श गाँव-गाँव तक पहुँचें।
उप मुख्यमंत्री ने मिलेट्स (श्री अन्न) को “भविष्य का अनाज” बताते हुए कहा कि ये फसलें कम पानी और कम संसाधनों में भी सफलतापूर्वक उत्पादन देती हैं और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों में भी टिकाऊ हैं। दलहन उत्पादन पर उन्होंने कहा कि बिहार देश में मसूर उत्पादन में चौथे स्थान पर है और राज्य की जलवायु इस फसल के लिए बेहद उपयुक्त है। वहीं सरसों, मूँगफली और सूरजमुखी जैसी तेलहन फसलें बिहार के किसानों को नकदी फसल के विकल्प के साथ-साथ देश को खाद्य तेलों में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में योगदान दे रही हैं।
उन्होंने कहा कि बिहार कृषि में डिजिटल क्रांति की ओर तेजी से बढ़ रहा है। फार्मर रजिस्ट्री से हर किसान को सुरक्षित डिजिटल पहचान मिल रही है, जिससे योजनाओं और सब्सिडी का लाभ सीधे किसानों तक पहुँच रहा है। अब तक 5.5 लाख किसानों का रजिस्ट्रेशन पूरा किया जा चुका है और इसे मिशन मोड में आगे बढ़ाया जा रहा है। साथ ही जलवायु परिवर्तन और आपदाओं से निपटने के लिए क्रॉप रेजिलिएंट एग्रीकल्चर को बढ़ावा देना समय की आवश्यकता है। इस दिशा में राज्य सरकार सक्रिय प्रयास कर रही है ताकि बाढ़ और सूखे जैसी चुनौतियों के बावजूद स्थायी उत्पादन सुनिश्चित हो सके।
मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता योजना पर उन्होंने कहा कि इस वित्तीय वर्ष में राज्य के 470 प्रखंडों में ग्राम स्तरीय मिट्टी जाँच प्रयोगशालाएँ और 32 अनुमंडलों में मिट्टी परीक्षण केंद्र स्थापित किए जाएंगे। इससे किसानों को स्थानीय स्तर पर ही मिट्टी परीक्षण की सुविधा मिलेगी और उन्हें अपनी भूमि की उर्वरता के अनुसार वैज्ञानिक सुझाव प्राप्त होंगे। उर्वरक की उपलब्धता पर उन्होंने बताया कि सरकार ने यूरिया, डीएपी, एमओपी जैसे आवश्यक उर्वरकों की समय पर आपूर्ति सुनिश्चित की है। सभी जिलों में रैक प्वाइंट डिपो सक्रिय किए गए हैं और खाद की कालाबाजारी तथा जमाखोरी पर कड़ी कार्रवाई की जा रही है। किसानों को असली और नकली उर्वरक की पहचान के लिए जागरूक भी किया जा रहा है।
सिन्हा ने कहा कि बिहार की कृषि प्रगति तीन स्तंभों पर आधारित है-फसल विविधीकरण (मिलेट्स, दलहन और तेलहन को बढ़ावा देना), डिजिटल एवं तकनीकी नवाचार (डिजिटल क्रॉप सर्वे, आधुनिक यंत्रों का उपयोग) और सतत एवं लचीली कृषि प्रणाली (जलवायु अनुकूल खेती और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण)। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इन तीनों आधार स्तंभों को साथ लेकर चलने से आने वाले समय में बिहार केवल खाद्य उत्पादन ही नहीं बल्कि पोषण और ऊर्जा सुरक्षा में भी देश का अग्रणी राज्य बनेगा।
इस अवसर पर कृषि विभाग, बिहार के प्रधान सचिव पंकज कुमार, कृषि निदेशक नितिन कुमार सिंह, निदेशक उद्यान अभिषेक कुमार, निदेशक, बामेती धनंजयपति त्रिपाठी, निदेशक, बसोका सनतकुमार जयपुरियार, संयुक्त निदेशक (रसायन) मिट्टी जाँच प्रयोगशाला विनय कुमार पाण्डेय, संयुक्त निदेशक (फसल एवं प्रक्षेत्र) डॉ॰ राजेश कुमार, संयुक्त निदेशक (शष्य) इनपुट ब्रज किशोर एवं नोडल पदाधिकारी, आर॰के॰भी॰वाई॰ राजीव कुमार ने भाग लिया।