Bihar Assembly Election: दूसरे चरण में आपराधिक उम्मीदवारों की संख्या देख रह जाएंगे हैरान

11/2/2020 5:53:52 PM

 

पटनाः बिहार को अपराध मुक्त और विकसित राज्य बनाने का दावा कमोबेश हर पार्टी के दिग्गज करते हैं, लेकिन एडीआर की रिपोर्ट से ये साफ हो गया है कि इन नेताओं के दावे पूरी तरह से खोखले हो चुके हैं।

एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार की राजनीति का पूरी तरह से अपराधीकरण हो गया है। दूसरे चरण के 94 सीटों पर चुनाव लड़ रहे एक हजार चार सौ 63 कैंडिडेट्स पर जारी हुए एडीआर रिपोर्ट के आंकड़े डराने वाले हैं। दूसरे चरण के कैंडिडेट्स के रिकॉर्ड को खंगाल कर तैयार किए गए एडीआर के रिपोर्ट से जो तस्वीर हमारे सामने आई है। उससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के सुचारू रूप से चलने को लेकर ही गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। बिहार के दूसरे चरण के 94 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं एक हजार चार सौ 63 कैंडिडेट्स पर एडीआर ने एक रिपोर्ट जारी किया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक उनमें से पांच सौ दो उम्मीदवारों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किए हैं, यानी देखा जाए तो कुल उम्मीदवारों के 34 फीसदी कैंडिडेट्स ने अपने ऊपर आपराधिक मामले दर्ज होने की जानकारी दी है।

वहीं कुल 389 उम्मीदवारों ने अपने उपर लगे मामलों को गंभीर दर्जे के अपराध होने की जानकारी भी दी है। इस लिहाज से दूसरे चरण के कुल उम्मीदवारों में से 27 फीसदी नेताओं पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। चुनाव प्रचार के दौरान भले ही हर राजनीतिक दल अपने विरोधियों पर तरह तरह के आरोप लगाते हैं, लेकिन राजनीति की इस काल कोठरी में हर पार्टी के चेहरे दागदार हैं। दूसरे चरण में आरजेडी के 56 उम्मीदवारों में से 36 कैंडिडेट्स पर अपराधिक मामले दर्ज हैं, यानी आरजेडी के दूसरे चरण के कुल उम्मीदवारों में से 64 फीसदी कैंडिडेट्स पर अपराधिक मामले दर्ज हैं।

इस रेस में बीजेपी भी आरजेडी के साथ कदमताल करती नजर आ रही है। दूसरे चरण में बीजेपी के 46 में से 29 कैंडिडेट्स पर अपराधिक मामले दर्ज हैं। इस लिहाज से दूसरे चरण में बीजेपी के 63 फीसदी उम्मीदवारों पर अपराधिक मामले दर्ज हैं, तो दूसरे चरण में कांग्रेस के 24 में से 14 उम्मीदवारों पर अपराधिक मामले दर्ज हैं। इस लिहाज से कांग्रेस पार्टी के 58 फीसदी उम्मीदवारों पर अपराधिक मामले दर्ज हैं, तो दूसरे चरण में एलजेपी के 52 में से 28 कैंडिडेट्स पर अपराधिक मामले दर्ज हैं, यानी एलजेपी के दूसरे चरण के 64 फीसदी उम्मीदवारों पर अपराधिक मामले दर्ज हैं। वहीं बीएसपी के 33 में से 16 उम्मीदवारों पर अपराधिक मामले दर्ज हैं। इस लिहाज से बीएसपी के 49 फीसदी उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। जेडीयू के भी 43 में से 20 उम्मीदवारों पर अपराधिक मामले दर्ज हैं, यानी जेडीयू के दूसरे चरण के 47 फीसदी उम्मीदवारों पर अपराधिक मामले दर्ज हैं।

दूसरे चरण में चुनावी मैदान में उतरने वाले तमाम पार्टियों के कैंडिडेट पर गंभीर अपराधिक मामले भी दर्ज हैं। एडीआर के रिपोर्ट के मुताबिक दूसरे चरण में आरजेडी के 56 में से 28 उम्मीदवारों पर गंभीर अपराध के मामले दर्ज हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो दूसरे चरण में आरजेडी के पचास फीसदी उम्मीदवारों पर गंभीर अपराधिक मामले दर्ज हैं। वहीं बीजेपी के 46 में से 20 कैंडिडेट पर गंभीर अपराधिक मामले दर्ज हैं। इस लिहाज से दूसरे चरण में बीजेपी के 44 फीसदी कैंडिडेट पर गंभीर अपराधिक मामले दर्ज हैं। वहीं जेडीयू के 43 में से 15 उम्मीदवारों पर गंभीर अपराधिक मामले दर्ज हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो दूसरे चरण में जेडीयू के 35 फीसदी उम्मीदवारों पर गंभीर अपराधिक मामले दर्ज हैं। वहीं दूसरे चरण में कांग्रेस के 24 में से 10 उम्मीदवार यानी कुल कैंडिडेट्स के 42 फीसदी उम्मीदवारों पर गंभीर अपराधिक मामले दर्ज हैं तो लोजपा के 52 में से 24 उम्मीदवार यानी 46 फीसदी कैंडिडेट्स पर गंभीर अपराधिक मामले दर्ज हैं।

चुनाव प्रचार के दौरान हर पार्टी के दिग्गज नेता महिलाओं की सुरक्षा का दावा करते हैं लेकिन दूसरे चरण में 49 उम्मीदवारों ने महिलाओं पर अत्याचार से संबंधित शर्मनाक मामले में शामिल होने की जानकारी दी है। इनमें से 49 उम्मीदवारों में से चार पर बलात्कार जैसे जघन्य अपराध में शामिल होने का मामला दर्ज है। वहीं 32 उम्मीदवारों ने अपने ऊपर हत्या से संबंधित मामले में शामिल होने की जानकारी दी है। इसके अलावा 143 उम्मीदवारों ने अपने उपर हत्या की कोशिश में शामिल होने की जानकारी दी है। दूसरे चरण के 94 में से 84 विधानसभा क्षेत्र संवेदनशील निर्वाचन क्षेत्र है, दरअसल जिन निर्वाचन क्षेत्रों के तीन या तीन से अधिक उम्मीदवारों पर अपराधिक मामले दर्ज होते हैं। उसे संवेदनशील क्षेत्र कहा जाता है यानी बिहार में दूसरे चरण के चुनाव वाले कुल सीटों में से 89 फीसदी सीट संवेदनशील क्षेत्र के तहत आता है।

इससे साफ हो जाता है कि बिहार की राजनीति में अपराध एक बड़ी समस्या है। उम्मीदवारों के चयन में सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश का भी कोई असर नहीं पड़ा। अगर ऐसे ही चलता रहा तो बिहार की राजनीति को लोकतांत्रिक मूल्यों के मुताबिक आगे बढ़ाने की बातें बस चुनावी जुमले हैं और चाहे सरकार किसी भी पार्टी की बने जनता को अपराध से मुक्ति नहीं मिल पाएगी।


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Nitika

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