औरंगाबादः पुनपुन नदी को पिंडदान का माना जाता है प्रथम द्बार, घाट पर पिंडदानियों का लगा हुआ तांता

9/21/2022 12:45:02 PM

 

औरंगाबादः पितरों का पिंडदान देश के कई जगहों पर किया जाता है लेकिन बिहार के औरंगाबाद जिले के पुनपुन नदी में प्रथम पिंडदान की सदियों से परंपरा चली आ रही है। पितृपक्ष के अवसर पर अपने पूर्वजों को प्रथम पिंडदान अर्पित करने के लिए इन दिनों जिले के बारून प्रखंड के सिरिस स्थित पुनपुन नदी घाट पर पिंडदानियों का तांता लगा हुआ है।

PunjabKesari

मान्यता के अनुसार, पुनपुन नदी को पिंडदान का प्रथम द्बार कहा जाता है। पुनपुन में पिंडदान करने के बाद ही गया में पिंडदान को संपन्न माना जाता है। इसके पीछे सदियों से चली आ रही मान्यता है। यदि यहां पिंडदान किए बिना कोई गया जाकर पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान करना चाहे तो ऐसा संभव नहीं हो सकता है। कहते हैं यहां पर पिंडदान करने से सात पीढ़ियों का उद्धार होता है। इसलिए पुनपुन में पितरों को पिंडदान करने के लिए देश ही नहीं विदेशों से भी लोग आते हैं।

पुनपुन घाट की है ये मान्यता
वहीं मुख्य पंडा सुरेश पाठक ने बताया कि मान्यताओं के अनुसार, इस पुनपुन घाट पर ही भगवान श्री राम ने माता जानकी के साथ अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पहला पिंड का तर्पण किया था, इसलिए इसे पिंडदान का प्रथम द्बार कहा जाता है। इसके बाद ही गया के फल्गु नदी तट पर पूरे विधि-विधान से तर्पण किया गया था। प्राचीन काल से पुनपुन नदी घाट पर पिंडदान तर्पण करने फिर गया के 52 वेदी पर पिंडदान का तर्पण करने की परंपरा भी है तभी पितृपक्ष में पिंडदान को पूरा तर्पण संपन्न माना जाता है। यहां वर्ष भर में 3 बार पिंडदान किया जाता है लेकिन आसीन माह वाला पिंडदान का विशेष महत्व है। पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए यहां पिंडदान किया जाता है।

बता दें कि पिंडदान एक भाव संप्रेषण प्रक्रिया है, जिसमें यहां मातृ कुल एवं पितृ कुल दोनों का पिंडदान होता है और हम अपने पितरों को यहां पर याद करते हैं और उनके नाम से पिंडदान करते हैं।
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Nitika

Recommended News

Related News

static