पद्म पुरस्कार ‘हो'' भाषा के संरक्षण पर फिर से ध्यान केंद्रित करेगा: जानुम सिंह सोय

1/27/2023 1:13:55 PM

रांची: झारखंड में जनजातीय भाषा ‘हो' को संरक्षण एवं प्रोत्साहन देने का काम पिछले कई दशकों से कर रहे हिंदी के प्रोफेसर जानुम सिंह सोय को इस वर्ष पद्मश्री पुरस्कार मिलने से शिक्षाविदों एवं आदिवासी समुदाय में खुशी की लहर है। 72 वर्षीय प्रोफेसर सोय ने मीडिया से बात करते हुए आशा व्यक्त की कि यह पुरस्कार आदिवासी ‘हो' भाषा के संरक्षण पर फिर से ध्यान केंद्रित करेगा।

केंद्र सरकार ने की जानुम सिंह सोय को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा
केंद्र सरकार ने आदिवासी भाषा ‘हो' के संरक्षण के लिए झारखंड के प्रोफेसर जानुम सिंह सोय को इस वर्ष पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा की है। सरकार ने उनकी मातृभाषा 'हो' को संरक्षित करने और बढ़ावा देने की दिशा में उनके काम की सराहना की है। जानुम सिंह सोय झारखंड के चाईबासा स्थित कोल्हान विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं। झारखंड में यह भाषा ‘हो' जनजाति के बीच बोली जाती है, जो मुख्य रूप से झारखंड के सिंहभूम क्षेत्र में निवास करती है, जिसे कोल्हान के नाम से भी जाना जाता है। बीते बुधवार को पद्म पुरस्कार के लिए प्रोफेसर सोय का नाम घोषित होने पर यहां लोगों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई और विद्वानों ने कहा कि ‘झारखंड के लाल' पद्मश्री जानुम सिंह सोय ने ‘हो' भाषा को राष्ट्रीय पहचान दिला दी है।

"सोय को ये सम्मान ‘हो' भाषा व ‘हो' जनजाति के लिए किए गए उनके कार्य के लिए मिला है"
झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक पद्मश्री बलबीर दत्त ने कहा कि गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या झारखंड के लिए खुशियां लेकर आई क्योंकि ‘हो' भाषा के विद्वान जानुम सिंह सोय को पद्मश्री सम्मान के लिए चुना गया। उन्होंने कहा कि सोय को यह सम्मान ‘हो' भाषा और ‘हो' जनजाति के लिए किए गए उनके कार्य के लिए मिला है। इस बीच, सामाजिक कार्यकर्ता एवं साहित्यकार रीता शुक्ला ने कहा कि आदिवासी भाषा के विद्वान सोय को पद्म पुरस्कार देने से राज्य के समूचे आदिवासी समुदाय का मान बढ़ा है।


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Khushi

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