शत प्रतिशत आरक्षण की नियोजन नीति पर झारखंड उच्च न्यायालय में सुनवाई प्रारंभ

7/11/2020 1:56:26 PM

रांचीः झारखंड उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने राज्य की तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी की सेवाओं में कई जिलों में शत प्रतिशत आरक्षण नीति को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शुक्रवार को सुनवाई प्रारंभ कर दी। इस मामले में सरकार की नियोजन नीति को चुनौती देने वाली सोनी कुमार की याचिका पर प्रार्थी की ओर से बहस पूरी कर ली गई।

इसके बाद न्यायमूर्ति एचसी मिश्र, एस चंद्रशेखर और दीपक रौशन की पीठ ने अगले सप्ताह राज्य सरकार को मामले में अपनी दलील पेश करने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान प्रार्थी के अधिवक्ता ललित कुमार सिंह ने पीठ से कहा कि 17 मार्च 2020 को सरकार की उस दलील के बाद सुनवाई टाल दी गई थी जिसमें कहा गया था कि ऐसा ही एक मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है लिहाजा सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद सुनवाई निर्धारित की जाए। प्रार्थी ने बताया कि उक्त मामले में 22 अप्रैल 2020 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि किसी भी परिस्थिति में किसी के लिए शत-प्रतिशत पद आरक्षित नहीं किए जा सकते हैं तथा पांचवीं अनुसूची में राज्यपाल को ऐसा करने का अधिकार नहीं है।

सिंह ने न्यायालय को बताया कि अब जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में अपना फैसला दे दिया है। ऐसे में राज्य सरकार की नियोजन नीति को रद्द करते हुए इसके तहत की गई नियुक्तियों को भी निरस्त किया जाए क्योंकि जनवरी 2020 को उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा था कि इस मामले में न्यायालय के अंतिम आदेश से नियुक्ति प्रक्रिया प्रभावित होगी। सोनी कुमारी की याचिका में कहा गया है कि राज्य के 24 में से 13 जिलों को अनुसूचित जिलों में रखा गया है। गैर अनुसूचित जिलों में पलामू, गढ़वा, चतरा, हजारीबाग, रामगढ़, कोडरमा, गिरिडीह, बोकारो, धनबाद, गोड्डा और देवघर शामिल हैं। सरकार की नियोजन नीति के चलते अनुसूचित जिलों के तृतीय श्रेणी एवं चतुर्थ श्रेणी के सभी पद उसी जिले के स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित हो गये हैं, जो कि असंवैधानिक है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Edited By

Diksha kanojia

Recommended News

Related News

static