भारतीय शैलचित्रों पर राष्ट्रीय संगोष्ठी, लद्दाख की चट्टानों से पंचमहाभूत तक गूंजा भारत का सांस्कृतिक वैभव
Friday, Jul 11, 2025-04:51 PM (IST)

पटना:भारतीय सभ्यता के प्राचीनतम रंगों और रेखाओं को सहेजते हुए कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक पहल की गई। बिहार संग्रहालय, पटना के सभागार में आयोजित “भारत के शैलचित्र एवं पुरातत्व” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में देशभर के जाने-माने इतिहासकार, पुरातत्वविद्, विद्वान एवं शोधार्थी एक मंच पर जुटे और भारत की सांस्कृतिक जड़ों पर विमर्श किया।
कार्यक्रम की शुरुआत पारंपरिक दीप प्रज्वलन और स्वागत समारोह के साथ हुई। निदेशक, पुरातत्व एवं संग्रहालय निदेशालय रचना पाटिल ने संगोष्ठी की पृष्ठभूमि, उद्देश्य और इसके महत्व पर प्रकाश डाला।
प्रमुख वक्तव्यों में भारतीय सभ्यता की गूंज
प्रो. वी. एच. सोनावाने, पूर्व विभागाध्यक्ष, बड़ोदरा विश्वविद्यालय ने “Glimpse of Indian Rock Art” विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा, “भारतीय सभ्यता एक जीवंत सभ्यता है, जिसे हजारों वर्षों पुरानी चट्टानों ने संजोकर रखा है।”
प्रो. बंशी लाल मल्ला, पूर्व विभागाध्यक्ष, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने “Genesis of Indian Art” पर अपने विचार रखते हुए कहा, “भारतीय दर्शन पंचमहाभूत से जुड़ा है। यहां धर्म और कला का रिश्ता हजारों वर्षों से कायम है।”
डॉ. एस. बी. ओटा पूर्व संयुक्त महानिदेशक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कहा, लद्दाख के रॉक आर्ट को भारत की प्राचीनतम चित्र परंपरा है। लद्दाख के पत्थरों पर उकेरी गई आकृतियाँ हमारे सबसे पुराने वासियों की रचनात्मकता की पहचान हैं। डॉ. ऋचा नेगी, विभागाध्यक्ष, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने “Rock Art and Ethnoarchaeology” विषय पर कहा, लोकगीत, लोककथाएं और चित्रकला हमारी ऐतिहासिक चेतना की जीवंत मिसाल हैं।
युवाओं में दिखी विशेष रुचि
इस संगोष्ठी में बड़ी संख्या में छात्र, शोधार्थी और सांस्कृतिक क्षेत्र के जिज्ञासु सहभागी बने। संवाद-सत्रों में युवाओं की सक्रिय भागीदारी यह दर्शाती है कि भारत की सांस्कृतिक जड़ों को जानने और संजोने की रुचि नई पीढ़ी में भी गहराई से मौजूद है।
कार्यक्रम का समापन कला, संस्कृति एवं युवा विभाग की विशेष कार्य पदाधिकारी कहकशाँ के धन्यवाद ज्ञापन के साथ गरिमामय रूप से संपन्न हुआ।