Bihar AQI: एक ही शहर, एक ही समय… हाजीपुर की हवा में डेटा का धुंआ, AQI स्तर देख सहमे लोग; आखिर सही कौन?
Friday, Dec 12, 2025-01:14 PM (IST)
Bihar AQI: बिहार में सर्दी बढ़ती के साथ वायु गुणवत्ता भी तेजी से बिगड़ रही है। राज्य के 19 शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर खराब पाया गया है। इसी बीच 11 दिसंबर की रात हवा को लेकर इंटरनेट पर कुछ ऐसा दिख रहा था, जिसने लोगों को चौंका दिया। दरअसल, वायु गुणवत्ता के आंकड़े जारी करने वाली वेबसाइट AQI.in के डैशबोर्ड पर हाजीपुर का AQI सीधा 1045 दर्ज था। यानी तकनीकी रूप से “Hazardous” से भी ऊपर। यह नंबर देखकर कई लोग डर गए- क्या सच में शहर की हवा ज़हरीली हो चुकी है? यह वायु गुणवत्ता ऐसा स्तर है जो आंकड़ों में शायद ही कभी दिखता है।

वहीं उसी समय, दूसरी ओर CPCB (Central Pollution Control Board), जो भारत की आधिकारिक पर्यावरण मॉनिटरिंग एजेंसी है, उसकी वेबसाइट पर वही AQI 138 दिख रहा था- जो “Moderate” से “Unhealthy for Sensitive Groups” के आसपास माना जाता है। अब सवाल से उठ रहा था कि एक ही शहर, एक ही समय… और AQI का अंतर इतना बड़ा क्यों? आखिर सच कौन बता रहा है?

दो डेटा, दो कहानी- लेकिन अंतर क्यों?
विशेषज्ञों के मुताबिक, इस तरह के बड़े अंतर के पीछे कुछ आम कारण हो सकते हैं:
1. मॉनिटरिंग स्टेशन अलग होना
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म अक्सर लो-कोस्ट सेंसर या निजी मॉनिटरिंग डिवाइस के डेटा का इस्तेमाल करते हैं। CPCB के स्टेशन कैलिब्रेटेड ग्रेड-A उपकरण होते हैं। एक ही शहर में अलग-अलग लोकेशन पर डेटा भिन्न होता है, लेकिन 1045 vs 138 का गैप असामान्य है।
2. सेंसर का खराब होना या ग्लिच
AQI.in पर दिखा 1045 संभव है कि किसी सेंसर की खराबी, बैकएंड एरर या गलत डेटा इनपुट का नतीजा हो। क्योंकि 1000+ AQI का मतलब है भारी स्मॉग, धुआँ, या स्थानीय प्रदूषण विस्फोट—जो आमतौर पर तुरंत मीडिया की सुर्खियों में आता है।
3. डेटा अपडेट का समय अलग होना
कभी-कभी प्राइवेट प्लेटफॉर्म और CPCB के बीच डेटा सिंक का समय अलग होता है, जिससे वास्तविक समय का फर्क क्रांतिक स्तर तक बढ़ सकता है।
4. डेटा के कैलकुलेशन मॉडल अलग होना
हर प्लेटफॉर्म AQI की गणना अलग एल्गोरिद्म से कर सकता है। CPCB भारत सरकार का मानक इंडेक्स उपयोग करता है।
लेकिन इसी बीच सोशल मीडिया पर कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गईं- कुछ लोग कहने लगे कि 1045 वाला डेटा डर फैलाता है, तो कुछ का कहना था कि अगर इतना बड़ा अंतर है, तो डेटा रिपोर्टिंग सिस्टम में ही कोई बड़ी खामी है।
तो सच कौन?
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार:
- जब भी ऐसा विरोधाभास दिखे, प्राथमिक विश्वसनीयता CPCB के डेटा की होती है, क्योंकि वह सरकारी रूप से मान्य, कैलिब्रेटेड और नियमित रूप से ऑडिटेड होता है।
- निजी प्लेटफॉर्म उपयोगी होते हैं, लेकिन कभी-कभी सेंसर एरर या गलत रीडिंग दे सकते हैं।

