Muslim Politics in Bihar- बिहार में चुनाव दर चुनाव क्यों घटते गए हैं मुस्लिम विधायक? जानिए किस जिले में कितनी है मुस्लिम आबादी
Wednesday, Oct 08, 2025-05:27 PM (IST)
पटना (विकास कुमार): बिहार की राजनीति में मुस्लिम वोटरों की काफी अहम भूमिका रही है। अब्दुल गफूर 1973 से 1975 तक बिहार के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। बिहार में करीब 17 दशमलव सात फीसदी मुस्लिम आबादी है। आजादी के बाद बिहार के मुस्लिम कांग्रेस के परंपरागत वोटर थे। बिहार में 1970 तक मुसलमान कांग्रेस के साथ रहे हैं। कांग्रेस ने मुस्लिम-ब्राह्मण-दलित वोटरों का एक मजबूत वोट बैंक तैयार किया था। 1971 में बांग्लादेश की आजादी के बाद बिहार में मुसलमानों की राजनीति में बदलाव का दौर शुरू हुआ। उन दिनों उर्दू भाषी बिहारी प्रवासियों की कई जगह हत्याएं हुई थीं। उन दिनों गुलाम सरवर, तकी रहीम, जफर इमाम और शाह मुश्ताक जैसे मुस्लिम नेताओं ने इस मुद्दे को उठाया था और मुसलमानों के बीच कांग्रेस विरोधी भावनाओं को भड़काया था।
मुस्लिम वोटरों पर भी पड़ा आंदोलन का असर
बाद में जेपी आंदोलन का असर मुस्लिम वोटरों पर भी पड़ा, जिसके कारण 1977 में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में जनता सरकार बनी। बिहार में यह पहली बार था, जब मुसलमानों ने कांग्रेस से खिलाफ वोट किया था। हालांकि, 1980 में मुस्लिमों ने कांग्रेस में फिर से वापसी किया था लेकिन 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन और लालू प्रसाद यादव के राजनीतिक उभार के बाद मुस्लिम आरजेडी के साथ जुड़ गए। लालू यादव के साथ मुस्लिमों के जुड़ने की एक बड़ी वजह 1989 में हुए भागलपुर का सांप्रदायिक दंगा रहा। इसने मुसलमानों को फिर एक बार कांग्रेस से दूर कर दिया था।
नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद सियासी तस्वीर बदली
बाद में आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के परिवार ने मुस्लिम यादव यानी माय समीकरण बनाकर 15 साल तक बिहार पर एकछत्र राज किया, लेकिन 2005 में नीतीश कुमार के बिहार की सत्ता में आने के बाद सियासी तस्वीर बदल गई। नीतीश कुमार ने मुस्लिम वोटों में अपना सियासी आधार बढ़ाने के लिए पसमांदा मुस्लिमों को उनका प्रतिनिधित्व देने का दांव चला। इसके चलते मुसलमानों का एक तबका नीतीश बाबू के साथ जुड़ गया। 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में 40 फीसदी मुस्लिम वोट जेडीयू को मिला, जबकि उस वक्त भी जेडीयू का बीजेपी के साथ गठबंधन था।
बिहार में विधानसभा सीटों की संख्या दो सौ 43 है। इसमें से 47 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं। इन इलाकों में मुस्लिम आबादी 20 से 40 फीसदी या इससे भी अधिक है। बिहार की 11 सीटें ऐसी हैं, जहां 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता है और 7 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं। इसके अलावा 29 विधानसभा सीटों पर 20 से 30 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता हैं। बिहार में आबादी के हिसाब से मुस्लिम विधायक बनने में सफल नहीं हो पाए। एक नजर डालते हैं मुस्लिम विधायकों की संख्या पर-
- 1952 के पहले चुनाव में बने थे 24 मुस्लिम विधायक
- 1957 में 25 और 1962 में बने थे 21 मुस्लिम विधायक
- 1967 में 18 और 1969 में बने थे 19 मुस्लिम विधायक
- 1972 और 1977 के चुनाव में बने थे 25-25 मुस्लिम विधायक
- 1980 के चुनाव में बने थे 28 मुस्लिम विधायक
- 1985 में 34 मुस्लिम विधायक जीतने में रहे थे सफल
- 1990 में विधानसभा पहुंचे थे 20 मुस्लिम विधायक
- 1995 के चुनाव में भी 19 मुस्लिम विधायकों ने दर्ज की थी जीत
- 2000 में 29 मुस्लिम विधायकों ने हासिल की थी जीत
- 2005 में 16 मुस्लिम ही जीतकर पहुंचे थे विधानसभा
- 2010 के चुनाव में 19 मुस्लिम विधायकों ने दर्ज की थी जीत
- 2015 के चुनाव में चुने गए थे 24 मुस्लिम विधायक
- 2020 के विधानसभा चुनाव में जीते 19 मुस्लिम विधायक
सीमांचल में 5 सीटें जीतकर ओवैसी ने मचा दी थी सियासी हलचल
2020 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल के इलाके में ओवैसी को जरूर सफलता मिली थी। बिहार के मुस्लिम बहुल सीमांचल के इलाके में पांच सीटें जीतकर ओवैसी ने पटना से दिल्ली तक सियासी हलचल मचा दी थी, लेकिन बाद में मजलिस के चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए। वहीं सीमांचल में आरजेडी के धोखे को ओवैसी मुद्दा बनाकर चुनावी मैदान में उतरेंगे। जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर भी 42 विधानसभा सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार उतार सकते हैं। इधर नाराज मुस्लिम वोटरों को मनाने के लिए लालू यादव ने ओसामा साहेब और हीना साहब को आरजेडी में पूरे सम्मान के साथ शामिल किया है।.2025 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समाज की राजनीतिक भागीदारी की चर्चा जोर शोर से ओवैसी कर रहे हैं। ओवैसी इस बार सीमांचल के अलावा मिथिलांचल से भी उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर चुके हैं। दरभंगा टाउन, जाले, केवटी, बिस्फी और बाजपट्टी विधानसभा सीट पर भी ओवैसी उम्मीदवार उतार सकते हैं। पटना स्थित AIMIM के प्रदेश कार्यालय मे अपने सैकड़ो समर्थकों के साथ सामाजिक कार्यकर्ता और आरजेडी के पूर्व प्रदेश महासचिव मीर रिजवान ने विधिवत रूप से AIMIM की सदस्यता ग्रहण कर ली है।उन्हें पार्टी की ओर से सिमरी बख्तियारपुर विधानसभा कन्वीनर बनाया गया है।
243 सदस्यीय विधानसभा में मात्र 19 मुस्लिम विधायक
1985 के विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक 34 मुस्लिम एमएलए बने थे। उसके बाद या पहले कभी यह आंकड़ा इस मुकाम तक नहीं पहुंचा। 2020 के विधानसभा चुनाव में उत्तर-पूर्वी सीमांचल क्षेत्र में असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली AIMIM ने जबरदस्त बढ़त बनाकर हलचल मचा दी थी। बिहार में भले ही 2 करोड़ से ज्यादा मुस्लिम आबादी हो, लेकिन विधानसभा में उनका प्रतिनिधित्व आबादी की अनुपात में कम ही रहा है। 2023 की जाति जनगणना में मुस्लिमों की कुल आबादी 2.3 करोड़ निकली पर 243 सदस्यीय विधानसभा में मात्र 19 मुस्लिम विधायक हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या कुल 7.64 करोड़ थी। इनमें मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 1.29 करोड़ थी। इससे पता चलता है कि मुस्लिम प्रतिनिधित्व आबादी की अनुपात में कम है।
‘हाशिए पर हैं पसमांदा मुसलमान’
मुस्लिमों में भी पसमांदा मुसलमानों की राजनीतिक भागीदारी बहुत कम है। 2019 में अंसारी महापंचायत में इस बात पर चिंता जताई गई थी कि 11 फीसदी आबादी वाले अंसारी जाति का कोई विधायक या सांसद नहीं है।
जानिए बिहार के किस जिले में कितनी है मुस्लिम आबादी
2011 के जनगणना के आधार पर बिहार के अलग अलग जिलों में मुस्लिम समाज की आबादी का पता चलता है।
जिला | आबादी (%) |
किशनगंज | 67.98 |
कटिहार | 44.46 |
अररिया | 42.95 |
पूर्णिया | 38.46 |
दरभंगा | 22.83 |
सीतामढ़ी | 21.62 |
मधुबनी | 19.12 |
सुपौल | 17.65 |
सीवान | 17.62 |
भागलपुर | 17.68 |
समस्तीपुर | 14.94 |
मुजफ्फरपुर | 15.90 |
पटना | 8.87 |
रोहतास | 7.39 |
भोजपुर | 7.27 |
बक्सर | 6.17 |
कैमूर | 5.08 |
शिवहर | 3.09 |
(2011 के जनगणना के आधार पर)
साफ है कि आबादी के अनुपात से बिहार में मुस्लिमों को राजनीतिक भागीदारी नहीं मिल पाई है। बीजेपी का भय दिखाकर ‘माय’ समीकरण से लालू यादव और तेजस्वी यादव की राजनीतिक शक्ति तो काफी बढ़ गई। अब ओवैसी मुस्लिम समाज को बिना किसी डर के राजनीतिक प्रतिनिधित्व हासिल करने की नसीहत दे रहे हैं। 2025 का विधानसभा चुनाव ये तय करेगा कि बिहार में मुस्लिम समाज की राजनीति का भविष्य कैसा रहेगा।