आधुनिक बिहार के सृजन का गवाह विधानसभा भवन मना रहा 100 वर्ष का उत्सव

10/20/2021 4:28:44 PM

 

पटनाः आधुनिक बिहार को गढ़ने, सजाने और संवारने की खातिर लिए गए निर्णयों का साक्षी रहा लोकतंत्र का मंदिर विधानसभा भवन अपने सृजन का शताब्दी वर्ष उत्सव मना रहा है।

जन आकांक्षाओं के मूर्तिमानस्वरूप बिहार विधानसभा भवन का निर्माण 100 वर्ष पूर्व प्रख्यात वास्तुविद् ए एन मिलवुड की डिजाइन पर किया गया था। इतालवी पुनर्जागरण शैली (रेनेंसा आकिर्टेक्चर) में बनी यह इमारत कई मायनों में खूबसूरती को समेटे हुए है जो इसे विशिष्ट बनाता है। इसमें समानुपातिक गणितीय संतुलन के साथ ही सादगी और भव्यता का समन्वय है। लंबे-लंबे गोलाकार स्तम्भ और अर्धवृत्ताकार मेहराब इसकी विशेषता हैं, जो प्राचीन रोमन शैली से प्रभावित है। इस आयताकार भवन में समरूपता का विशेष ख्याल रखा गया है। भवन के अगले हिस्से में जो प्लास्टर है, उसमें एक निश्चित अंतराल पर कट-मार्क हैं जो इसे बेहद खूबसूरत बनाते हैं और दूसरी संरचनाओं से इसे अलग भी करते हैं।

विधानसभा का सभा कक्ष अर्धगोलाकार है। इसकी आंतरिक संरचना 60 फुट लंबी और 50 फुट चौड़ी है। इसका विस्तार इमारत की दोनों मंजिलों में है। पहले विधानसभा का कार्यकाल 1952 में 331 सदस्य सभाकक्ष में बैठा करते थे। वर्ष 1977 में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में विधानसभा सदस्यों की संख्या 324 हो गई और एक मनोनीत सदस्य पूर्ववत बने रहे। बाद में जब 2000 में बिहार का विभाजन होकर झारखंड बना तो विधानसभा सदस्यों की संख्या 324 से घटकर 243 रह गई। अब सत्र के दौरान 243 सदस्य सभा कक्ष में बैठा करते हैं। |

इस भवन के निर्माण का सार बिहार की विधायिका के इतिहास में है। गवर्नमेंट ऑफ इंडिया अधिनियम 1919 के तहत बिहार एवं उड़ीसा को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया, जो वर्ष 1920 में साकार हुआ। पूर्ण राज्य का दर्जा मिलते ही बिहार में राज्यपाल की नियुक्ति हुई। इसके पहले बिहार में उपराज्यपाल हुआ करते थे। बिहार के पहले राज्यपाल लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा हुए। अलग राज्य बनने पर एक परिषद सचिवालय की जरूरत महसूस की गई तो 1920 में एक इमारत (मौजूदा विधानसभा भवन) का निर्माण शुरू किया गया।


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Nitika

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