3 बार रहे मुख्यमंत्री, मिली दिशोम गुरु की पद्धति...कुछ ऐसा रहा शिबू सोरेन का सियासी सफर
Monday, Aug 04, 2025-04:34 PM (IST)

Jharkhand News: झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सुप्रीमो शिबू सोरेन, जिन्हें उनके समर्थक गुरुजी कहकर संबोधित करते हैं, उनका राजनीतिक करियर दशकों तक फैला हुआ है। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण मील के पत्थर स्थापित किए हैं, जिसमें केंद्र सरकार में मंत्री के रूप में कार्य करना और संसद के उच्च सदन, राज्यसभा में प्रतिनिधित्व करना भी शामिल है।
शिबू सोरेन 3 बार राज्यसभा के सदस्य रहे
शिबू सोरेन ने अपनी संसदीय यात्रा की शुरुआत 1980 में दुमका लोकसभा सीट से सांसद के रूप में की थी। उस समय झारखंड अविभाजित बिहार का ही हिस्सा था। यह उनकी राजनीति में एक महत्वपूर्ण शुरुआत थी, जिसने उन्हें राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाई। शिबू सोरेन को केंद्र सरकार में कोयला मंत्री का पदभार दो बार संभालने का अवसर मिला। ये दोनों ही कार्यकाल मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दौरान थे। लोकसभा के साथ-साथ, शिबू सोरेन ने राज्यसभा में भी झारखंड का प्रतिनिधित्व किया है। वह तीन बार राज्यसभा के सदस्य रहे।
मिली दिशोम गुरु की उपाधि
ऐसे तो कहा जाता है कि शिबू सोरेन की पहचान “टुंडी” सीट से हुई है. हालांकि, वह वर्ष 1977 में वह विधानसभा चुनाव तो नहीं जीत सके थे लेकिन उन्हें “दिशोम गुरु “की पदवी जरूर मिल गई। 70 के दशक में शिबू सोरेन ने “धन कटनी” आंदोलन के नाम से टुंडी में आदिवासियों को गोलबंद किया था महाजनों और सूदखोरों के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूका था। इस आंदोलन के बाद ही आदिवासियों ने शिबू सोरेन को अपनाते हुए उन्हें “दिशोम गुरु” की उपाधि दी। दिशोम गुरु का मतलब देश का गुरु होता है, यह एक संथाली शब्द है।
2024 के विधानसभा चुनाव में JMM ने हेमंत सोरेन के नेतृत्व में नया इतिहास रचा
बात करें JMM की तो झारखंड की सत्ता में काबिज झारखंड मुक्ति मोर्चा, भले ही मुख्य रूप से झारखंड में सक्रिय हो पर इस राजनीतिक दल ने पूरे देश में अपनी पहचान बना ली है, राष्ट्रीय दलों को आंख दिखाकर राजनीतिक रूप से चुनौती देने वाला झारखंड मुक्ति मोर्चा, वर्ष 1980 के विधानसभा चुनाव में पहली बार राजनीतिक रूप से जनता के बीच पहुंची और संथाल परगना क्षेत्र के 18 में से 7 सीटों पर जीत हासिल कर खुद को क्षेत्रीय दल के रूप में स्थापित करने में सफलता पाई। वर्ष 1980 में विधानसभा चुनाव में पहली बार साइमन मरांडी, सूरज मंडल, देवीधन बेसरा, स्टीफन मरांडी, डेविड मुर्मू, अशया चरण लाल, देवन सोरेन जैसे नेताओं ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर 1980 में चुनाव जीता था। इसके बाद वर्ष 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा को 7 सीटों पर ही जीत मिली थी।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए वर्ष 1990 का विधानसभा चुनाव राजनीतिक रूप से टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ, झामुमो ने संथाल परगना के 18 में से 8 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वर्तमान की बात करें तो झारखंड मुक्ति मोर्चा का प्रभाव झारखंड के पांचो प्रमंडल में है। हालांकि, संथाल और कोल्हान को झारखंड मुक्ति मोर्चा का गढ़ माना जाता है। वर्ष 2019 के चुनाव में संथाल परगना की 18 में से 9 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि भारतीय जनता पार्टी को संथाल परगना की चार सीटों पर जीत से ही संतोष करना पड़ा था। वहीं कांग्रेस ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी। जबकि झारखंड के कोल्हान प्रमंडल की बात करें तो वर्ष 2019 में, कोल्हान प्रमंडल से भारतीय जनता पार्टी का पूरी तरह सफाया हो गया था। कोल्हान के 14 में से 13 सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस गठबंधन ने जीत दर्ज की थी जबकि एक सीट पर निर्दलीय सरयू राय ने।
2024 के विधानसभा चुनाव में, झारखंड मुक्ति मोर्चा ने हेमंत सोरेन के नेतृत्व में नया इतिहास रचा था और पहली बार झारखंड के 34 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी। 14 अप्रैल और 15 अप्रैल को, रांची में हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा के 13वे केंद्रीय महाधिवेशन में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जहां पार्टी का केंद्रीय अध्यक्ष चुना गया, वहीं दिशोम गुरु शिबू सोरेन को पार्टी का संस्थापक संरक्षक। ऐसे तो वर्ष 2024 के विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी के संस्थापक संरक्षक और पार्टी के पूर्व केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन अपने स्वास्थ्य कारणों की वजह से चुनाव में सक्रिय नहीं थे, लेकिन झारखंड की राजनीति में “गुरु जी” का ऐसा प्रभाव है कि उनके नाम मात्र लेने से प्रत्याशी चुनाव में बंपर जीत दर्ज करते हैं।