संरक्षित क्षेत्र में शिकारी और वन्यजीव तस्कर सक्रिय, पलामू बाघ अभयारण्य के अधिकारियों ने सशस्त्र ब्रिगेड बनाने का किया आग्रह

Monday, Sep 15, 2025-04:46 PM (IST)

रांची: पलामू बाघ अभयारण्य (पीटीआर) के अधिकारियों ने झारखंड सरकार से वन कर्मियों की एक सशस्त्र ब्रिगेड बनाने का आग्रह किया है, क्योंकि संरक्षित क्षेत्र में शिकारी और वन्यजीव तस्कर सक्रिय हो गए हैं। अधिकारी ने कहा कि इस तरह के सशस्त्र समूह का गठन आवश्यक है, क्योंकि पिछले तीन दशकों में संरक्षित वन क्षेत्र में शिकारियों और लकड़ी तस्करों द्वारा कम से कम 12 निहत्थे कर्मियों की हत्या की गई है। बीस अगस्त को, संरक्षित क्षेत्र से नौ सशस्त्र शिकारियों को गिरफ्तार किया गया और उनके कब्जे से आठ देसी बंदूक, 400 ग्राम बारूद, 14 ग्राम गंधक, एक बाघ जाल, एक फंदा, एक कुल्हाड़ी और जानवरों के अंग बरामद किये गये। गिरफ्तार किए गए लोगों ने स्वीकार किया था कि उन्होंने 10 वर्ष पहले अभयारण्य के गारू वन क्षेत्र के चंदवा चट्टान में एक बाघ को मार डाला था, इसके अलावा उन्होंने संरक्षित वन में जंगली सूअर, हिरण और अन्य जानवरों का भी शिकार किया था। इसके अलावा, 17 अगस्त को संरक्षित क्षेत्र में चार शिकारियों को गिरफ्तार किया गया।

अधिकारी ने बताया कि शिकारियों का पीछा करते समय लाठी लेकर चल रहा एक वनरक्षक उस समय बाल-बाल बच गया था जब एक अपराधी ने उसपर गोली चला दी थी। पीटीआर के उपनिदेशक प्रजेश जेना ने कहा, ‘‘पहले वन रक्षकों को शिकारियों और लकड़ी तस्करों से निपटने के लिए हथियार दिए जाते थे। राज्य में माओवादी गतिविधियों में वृद्धि के बाद, 1990 के आसपास उनके हथियार वापस ले लिये गए, क्योंकि माओवादी उनपर हमला कर उनके हथियार छीन लेते थे।'' उन्होंने कहा कि अब स्थिति बदल गई है और पीटीआर समेत ज्यादातर स्थान माओवादियों से मुक्त हो गए हैं। पीटीआर के ‘बफर जोन' में आने वाला बूढ़ा पहाड़ कभी माओवादियों का गढ़ हुआ करता था और पहाड़ी इलाका बारूदी सुरंगों से भरा हुआ था। झारखंड पुलिस के अनुसार, यह इलाका 2022 में माओवादियों के चंगुल से मुक्त हो गया था। उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, अवैध शिकार, लकड़ी की तस्करी और अतिक्रमण जैसी अवैध गतिविधियों का खतरा बढ़ गया है। हमने सरकार से वन रक्षकों की एक सशस्त्र ब्रिगेड बनाने और वन अपराधों से निपटने के लिए उनके प्रशिक्षण को सुनिश्चित करने का आग्रह किया है।'' उन्होंने कहा कि असम में वन सशस्त्र बल का गठन किया गया और उसके बाद काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में अवैध शिकार में भारी कमी आई। जेना ने कहा, ‘‘ओडिशा में वन और पुलिस अधिकारियों को मिलाकर एक विशेष कार्यबल का गठन किया गया था। कई अन्य राज्यों में भी वनों की सुरक्षा के लिए सशस्त्र बल हैं।''

अधिकारी ने कहा, ‘‘पीटीआर अधिकारियों ने 1990 से सशस्त्र शिकारियों और तस्करों से लड़ते हुए कम से कम 12 वन रक्षकों को खो दिया है।'' पीटीआर अधिकारी वन्यजीवों की सुरक्षा में अपनी जान गंवाने वाले वन रक्षकों को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल 11 सितंबर को ‘शहीद दिवस' मनाते हैं। राज्य वन्यजीव बोर्ड के पूर्व सदस्य डीएस श्रीवास्तव ने कहा कि वह कई वर्षों से इस मुद्दे को उठा रहे हैं। श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘वन रक्षकों को पुलिस नियमावली के तहत अधिकार भी दिए जाने चाहिए, क्योंकि कई राज्यों में ऐसे कदम उठाए गए हैं। शिकारी और तस्कर अत्याधुनिक हथियारों से लैस होते हैं। वन रक्षक बांस के डंडों से उनका मुकाबला कैसे कर सकते हैं?'' उन्होंने कहा कि यदि वन रक्षकों को हथियार उपलब्ध करा दिए जाएं तो वन्यजीव अपराध स्वतः ही कम हो जाएंगे। श्रीवास्तव ने कहा कि वन रक्षकों को भी कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘यदि कोई वन रक्षक शिकारियों या तस्करों से लड़ते हुए अपनी जान गंवा देता है, तो उसे पुलिसकर्मियों के समान लाभ नहीं मिलेगा।'' पीटीआर 1,129.93 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें से 414.08 वर्ग किलोमीटर को मुख्य क्षेत्र, एक महत्वपूर्ण बाघ पर्यावास, तथा शेष 715.85 वर्ग किलोमीटर को ‘बफर जोन' के रूप में चिह्नित किया गया है। एक वरिष्ठ वन अधिकारी ने बताया कि राज्य के किसी भी वन क्षेत्र में सशस्त्र व


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Khushi

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