Subhash Chandra Bose Birth Anniversary: झारखंड से जुड़ी हुई है सुभाषचंद्र बोस की यादें, गोमो रेलवे स्टेशन पर देखे गए थे अंतिम बार
Thursday, Jan 23, 2025-01:20 PM (IST)
धनबाद: आज यानी 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती है। देशवासी पराक्रम दिवस के रुप में इसे मनाते हैं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की यादें गोमो से जुड़ी हुई है। उनका गोमो से गहरा नाता रहा है। अंतिम बार नेता जी सुभाष चन्द्र बोस गोमो ही देखे गए थे। इसके बाद वह कहां गए इस बात की जानकारी किसी को नहीं।
2 जुलाई 1940 को हॉलवेल आंदोलन के दौरान नेताजी को भारतीय रक्षा अधिनियम की धारा 129 के तहत कोलकाता में गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने प्रेसीडेंसी जेल में भूख हड़ताल कर दी जिससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। उनके बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 5 दिसंबर 1940 को इस शर्त पर रिहा कर दिया कि स्वास्थ्य में सुधार होते ही उन्हें दोबारा गिरफ्तार किया जा सकता है। यहां से रिहा होने के बाद वे एल्गिन रोड स्थित अपने आवास पर चले गए। नेताजी के मामले की सुनवाई 27 जनवरी 1941 को होनी थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार तब हैरान रह गई, जब उन्हें 26 जनवरी को पता चला कि नेताजी कोलकाता में हैं ही नहीं।उन्हें खोजने के लिए सैनिकों को अलर्ट संदेश भेजा गया, लेकिन तब तक नेताजी अपने करीबी सहयोगियों की मदद से महाभिनिष्क्रमण की तैयारी शुरू कर चुके थे।
योजना के अनुसार, नेताजी अपना भेष बदलकर एक कार में सवार हुए और 16-17 जनवरी की रात करीब 1 बजे कोलकाता से अपनी यात्रा पर निकल पड़े। इस योजना के अनुसार नेताजी अपनी बेबी ऑस्टिन कार से गोमो पहुंचे। वे यहां एक पठान के भेष में पहुंचे थे। 18 जनवरी 1941 को एक पुराना कंबल ओढ़कर नेताजी धनबाद के गोमो स्टेशन से हावड़ा-पेशावर मेल (अब नेताजी मेल) में सवार हुए और इसके बाद गुमनामी में खो गए। नेता जी सुभाष चंद्र बोस 18 जनवरी की रात पठान के वेश में गोमो स्टेशन से ही पेशावर मेल से रवाना हुए थे। वही पेशावर मेल जिसे बाद कालका मेल और अब वर्तमान में नेताजी एक्सप्रेस के नाम से जाना जाता है। इसी ट्रेन में नेताजी अपने गंतव्य के लिए रवाना हुए। उनके इस यात्रा को निष्क्रमण यात्रा के रूप में याद किया जाता है। ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर नजरबंद कर लिया था तो नेताजी ने भेष बदल कर भागने की योजना बनाई, उनकी इस रणनीति में उनके मित्र सत्यव्रत बनर्जी साथ थे। सत्यव्रत बनर्जी ने इसे महाभिनिष्क्रमण यात्रा का नाम दिया था।