‘बिहार राज्य की जलवायु अनुकूलन एवं न्यून कार्बन उत्‍सर्जन विकास रणनीति’ प्रोजेक्ट के तहत दरभंगा प्रमण्डल में आयोजित किया गया कार्यशाला

Tuesday, Jul 16, 2024-08:45 PM (IST)

Darbhanga News: समाहरणालय अवस्थित बाबा साहेब डॉ.भीमराव अंबेडकर सभागार में कार्बन न्यूट्रल स्टेट बनाने की दिशा में ‘बिहार राज्य की जलवायु अनुकूलन एवं न्यून कार्बन उत्‍सर्जन विकास रणनीति’ प्रोजेक्ट के तहत कार्यशाला का आयोजन मंगलवार को किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ अपर समाहर्ता, आपदा, सलीम अख्तर की अध्यक्षता में किया गया। कार्यशाला पर अपने विचार व्यक्त करते हुए दरभंगा के उप- विकास आयुक्त  चित्रगुप्त कुमार ने कहा की जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों  को कम करने के लिए जन- जागरूकता अति आवश्यक है। उन्होंने गिरते भूजल- स्तर और वार्षिक वर्षापात में हो रही कमी को देखते हुए, जल संरक्षण और  सदुपयोग पर ज़ोर दिया।
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कार्यशाला की विस्तृत जानकारी डब्ल्यू आर आई इंडिया के प्रोग्राम प्रबंधक डॉ शशिधर कुमार झा एवं मणि भूषण कुमार झा द्वारा दिया गया। मणि भूषण ने कहा की कार्यशाला का उद्देश्य बिहार राज्य की जलवायु अनुकूलन एवं न्यून कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति का जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन के लिए स्थानीय हितधारकों को रणनीति के बारे में संवेदित करना, क्रियान्वयन में आने वाली चुनौतियों और कठिनाइयों की पहचान करना तथा उनके समाधान के रास्तों पर विचार विमर्श करना है। उन्होंने कहा कि 'क्लाइमेट रेसिलियंट एंड लो कार्बन डेवलपमेंट पाथवे फॉर बिहार' (बिहार राज्य की जलवायु अनुकूलन एवं न्यून कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति) शीर्षक वाले इस रिपोर्ट में अनुकूलन और शमन दोनों ही उपायों को जोड़कर राज्य में जलवायु संरक्षण से संबंधित एक दीर्घकालिक प्रयास प्रस्तावित किए गए हैं । बिहार के माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 04 मार्च 2024 को इस रिपोर्ट का विमोचन किया था।

डॉ शशिधर ने अपने सम्बोधन में कहा की नेट जीरो का सटीक अर्थ शुन्य कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन नहीं , बल्कि उत्सर्जित कार्बन को उतनी ही मात्रा में अवशोषित और संग्रहीत करना है। वर्तमान में बिहार लगभग 97  मेट्रिक टन कार्बन डाई ऑक्‍साइड समतुल्‍य का कार्बन उत्‍सर्जन करता है, जो की भारत के सम्पूर्ण उत्सर्जन का लगभग 3 प्रतिशत है । आने वाले वर्षों में राज्य में विकास की गति बढ़ने से कार्बन उत्सर्जन और भी बढ़ सकता है,  लेकिन नेट जीरो रणनीति को अपनाने से उत्सर्जन में तुलनात्मक कमी लायी जा सकती है, परिणाम स्वरुप जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को भी  कम किया जा सकता है।एमएलएसएम कॉलेज के सेवा निवृत्ति प्राचार्य विद्ययानाथ झा द्वारा बताया गया कि मखाना की खेती दरभंगा,  मधुबनी,  सहरसा, पूर्णिया,  सुपौल, किशनगंज आदि जिलों में की जाती है।

कार्यक्रम में उपस्थित विभिन विभागों  अधिकारीगण और अन्य हितधारकों ने भी अपने विचार साझा किये । प्रतिभागियों द्वारा उठाये गए मुद्दों में जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित बजट आवंटन, नदियों में गाद प्रबंधन, उर्वरक और यूरिया के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता में कमी और सूक्ष्म स्तर पर डाटा संग्रहण और मूल्यांकन शामिल थे।कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन उप निदेशक जन-संपर्क सत्येंद्र प्रसाद द्वारा किया गया। कार्यक्रम के पश्चात समाहरणालय परिसर में पौधारोपण किया गया। यह कार्यशालाएं बिहार के सभी 09 प्रमंडल में आयोजित की जाएंगी और इनमें सार्वजनिक सत्र भी शामिल होंगे। अगली कार्यशाला 18 जुलाई को पूर्णिया में आयोजित की जा रही है।


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Content Editor

Mamta Yadav

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