अटूट आस्था का केंद्र है बिहार का त्रेतायुगीन सूर्य मंदिर, छठ पर होती है सूर्य देव की उपस्थिति की अनुभूति

Saturday, Oct 29, 2022-05:37 PM (IST)

औरंगाबादः बिहार में औरंगाबाद जिले के देव स्थित ऐतिहासिक त्रेतायुगीन सूर्य मंदिर देशी-विदेशी पर्यटकों, श्रद्धालुओं और छठव्रतियों की अटूट आस्था का केंद्र बना हुआ है। भगवान भास्कर का त्रेतायुगीन सूर्य मंदिर सदियों से लोगों को मनोवांछित फल देने वाला पवित्र धर्मस्थल रहा है। 

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भगवान विश्वकर्मा ने किया था मंदिर का निर्माण
यूं तो सालों भर देश के विभिन्न जगहों से लोग यहां पधारकर मनौतियां मांगने और सूर्यदेव द्बारा उनकी पूर्ति होने पर अर्घ्य देने आते हैं लेकिन लोगों का विश्वास है कि कार्तिक एवं चैती छठ व्रत के पुनीत अवसर पर सूर्य देव की साक्षात उपस्थिति की रोमांचक अनुभूति होती है। देव स्थित भगवान भास्कर का विशाल सूर्य मंदिर अपने अप्रतिम सौंदर्य और शिल्प के कारण सदियों श्रद्घालुओं, वैज्ञानिकों, मूर्तिचोरों व तस्करों एवं आमजनों के लिए आकर्षण का केंद्र है। मंदिर की अभूतपूर्व स्थापत्य कला, शिल्प, कलात्मक भव्यता और धार्मिक महत्ता के कारण ही जनमानस में यह किंवदंति प्रसिद्ध है कि इसका निर्माण देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं अपने हाथों से किया है।

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काले और भूरे पत्थरों की अति सुंदर कृति जिस तरह उड़ीसा प्रदेश के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर का शिल्प है, ठीक उसी से मिलता-जुलता शिल्प देव के प्राचीन सूर्य मंदिर का भी है। मंदिर के निर्माणकाल के संबंध में उसके बाहर ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण एवं संस्कृत में अनुवादित एक श्लोक जड़ा है, जिसके अनुसार 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने के बाद इलापुत्र पुरूरवा ऐल ने देव सूर्य मंदिर का निर्माण आरंभ करवाया। शिलालेख से पता चलता है कि वर्ष 2014 में इस पौराणिक मंदिर के निर्माण काल का एक लाख पचास हजार चौदह वर्ष पूर्ण हो चुके हैं।


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Ramanjot

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