कौन दिशा में लेकर चला रे बटोहिया…? चंदन–गुंजा के किरदारों में फिर जिया दर्शकों ने बिहार की मिट्टी का अपनापन

Sunday, Dec 21, 2025-06:43 AM (IST)

Bihar Hindi News: बिहार की लोक-परम्पराओं, रिश्तों और संस्कृति की सौंधी खुशबू को बड़े पर्दे पर फिर से महसूस करने का मौका मिला, जब राजश्री प्रोडक्शन के बैनर तले वर्ष 1982 में बनी कल्ट क्लासिक फिल्म “नदिया के पार” का प्रदर्शन किया गया। फिल्म देखकर दर्शकों की जुबां पर वही सवाल था— “कौन दिशा में लेकर चला रे बटोहिया…?”

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बिहार सरकार के कला एवं संस्कृति विभाग के अंतर्गत बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम लिमिटेड द्वारा ‘कॉफी विद फिल्म’ कार्यक्रम के तहत शनिवार को स्थानीय हाउस ऑफ वेरायटी, रीजेंट सिनेमा कैंपस, गांधी मैदान, पटना में अपराह्न 3 बजे इस फिल्म का प्रदर्शन किया गया। इस पहल के जरिए बिहार की संस्कृति, परम्पराओं और जड़ों से जुड़ी फिल्मों को लगातार दर्शकों तक पहुंचाया जा रहा है।

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फिल्म निगम के फिल्म सलाहकार अरविंद रंजन दास ने बताया कि भोजपुरी फिल्मों और गीतों की गिरती साख के कारण बिहार से जुड़ी फिल्मों को लेकर नकारात्मक माहौल बन गया है। ऐसे में यह आवश्यक हो गया है कि बिहार की गौरवशाली विरासत और समृद्ध सांस्कृतिक परम्पराओं पर आधारित फिल्मों को सामने लाकर एक सकारात्मक और रचनात्मक माहौल तैयार किया जाए। उन्होंने बताया कि निगम के प्रबंध निदेशक प्रणव कुमार एवं महाप्रबंधक रूबी के नेतृत्व में बिहार फिल्म प्रोत्साहन नीति के माध्यम से राज्य में फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने के निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।

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चंदन और गुंजा में दिखी बिहार की आत्मा

फिल्म “नदिया के पार” के सदाबहार किरदार चंदन और गुंजा ने दर्शकों को एक बार फिर बिहार की मिट्टी, रिश्तों की सादगी और लोकजीवन के रंगों से जोड़ दिया।

निर्देशक गोविंद मुनिस और निर्माता ताराचंद बड़जात्या की इस फिल्म को स्वर्गीय रविंद्र जैन के कर्णप्रिय गीतों ने कालजयी बना दिया। फिल्म का गीत “कौन दिशा में लेके चला रे बटोहिया” आज भी जेन-जी तक को गुनगुनाने पर मजबूर करता है।

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प्रसिद्ध लेखक केशव प्रसाद मिश्र के उपन्यास “कोहबर की शर्त” पर आधारित इस फिल्म की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 1994 में इसी कहानी पर बनी फिल्म “हम आपके हैं कौन” ने भी सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए।

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ऐसी फिल्में दर्शकों को उनकी जड़ों से जोड़ती हैं

फिल्म प्रदर्शन के साथ “बिहार की क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में: जुड़ें अपनी जड़ों से” विषय पर परिचर्चा भी आयोजित की गई। फिल्म निर्माता संजय कुमार ने कहा कि ऐसी फिल्मों का प्रदर्शन दर्शकों को उनकी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ता है और यह याद दिलाता है कि बिहार की संस्कृति कितनी समृद्ध और सशक्त है।

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प्रसिद्ध रंगकर्मी व फिल्म निर्माता-निर्देशक मिथिलेश सिंह ने लेखक केशव प्रसाद मिश्र से जुड़ी भावनात्मक स्मृतियाँ साझा कीं। वहीं जूनियर चार्ली चैप्लिन के नाम से मशहूर राजन कुमार ने लंदन और जापान के अनुभव साझा करते हुए कहा कि बिहार सरकार फिल्म के क्षेत्र में सराहनीय और अद्वितीय कार्य कर रही है।

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कार्यक्रम के अंत में फिल्म परामर्शी अरविंद रंजन दास ने कला एवं संस्कृति विभाग के सचिव प्रणव कुमार एवं फिल्म निगम की महाप्रबंधक रूबी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए विश्वास जताया कि बिहार में फिल्म उद्योग के विकास की यह यात्रा लगातार आगे बढ़ती रहेगी।


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Content Writer

Ramanjot

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