बिहार की गोल्डन गर्ल्स: सपना, संघर्ष और अस्मिता लीग से चमकी रग्बी में चमक
Sunday, May 11, 2025-09:16 AM (IST)

पटना: पटना के पाटलिपुत्र स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स जश्न में डूबा था। बिहार की बेटियों की रग्बी टीम ने इतिहास रचते हुए खेलो इंडिया यूथ गेम्स (KIYG) 2025 में रग्बी के डेब्यू पर ओडिशा को 22-0 से हराकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया। इस ऐतिहासिक जीत की नायिकाओं में तीन जुझारू लड़कियां— अंशु कुमारी, सलोनी कुमारी और अल्पना कुमारी — शामिल थीं, जिन्होंने न केवल अपनी टीम को जीत दिलाई, बल्कि आत्मबल, सशक्तिकरण और उम्मीद की एक बड़ी कहानी को भी जीवंत कर दिया।
बिहार के लिए यह सिर्फ एक और मेडल नहीं था। यह एक सशक्त संदेश था। ऐसा संदेश कि सुपौल, पटना और नालंदा की तंग गलियों में पले सपने भी राष्ट्रीय मंच पर दमक सकते हैं। यह संदेश कि अस्मिता लीग — एक ऐसी पहल जो किशोरियों को रग्बी के ज़रिए सशक्त करने के उद्देश्य से शुरू की गई — अब असरदार और बदलाव लाने वाली साबित हो रही है।
बिहार की स्वर्ण पदक विजेता टीम की 12 में से 10 खिलाड़ी अस्मिता लीग (Achieving Sports Milestone by Inspiring Women Through Action) के ज़रिए तैयार हुई हैं। एक ऐसा जमीनी स्तर का आंदोलन, जिसने पिछले तीन वर्षों में बिहार में महिला खेलों की परिभाषा ही बदल दी है। इन लड़कियों के लिए कभी रग्बी एक अनजाना खेल था लेकिन आज यह उनकी पहचान बन चुका है। इसके दम पर आज ये लड़कियां नायिकाएं बन चुकी हैं।
अस्मिता लीग (Achieving Sports Milestone by Inspiring Women Through Action) लीग और प्रतियोगिता के माध्यम से महिलाओं के बीच खेलों को बढ़ावा देने के लिए खेलो इंडिया के लिंग-तटस्थ मिशन का हिस्सा है। इस प्रकार, भारतीय खेल प्राधिकरण राष्ट्रीय खेल महासंघों को क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर कई आयु समूहों में खेलो इंडिया महिला लीग आयोजित करने में सहायता करता है। 2021 में शुरू की गई ASMITA लीग का उद्देश्य न केवल खेलों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना है, बल्कि पूरे भारत में नई प्रतिभाओं की पहचान के लिए एक मंच के रूप में लीग का उपयोग करना है।
जीत के बाद इस तिकड़ी ने कहा, “हम में से किसी ने कुछ साल पहले तक रग्बी का नाम भी नहीं सुना था। हम कुछ अन्य खेलों में थे और परिस्थितियों ने हमें रग्बी तक पहुँचाया। फिर अस्मिता लीग हमारे ज़िलों, हमारे स्कूलों और हमारी ज़िंदगियों में यह खेल लेकर आई। इस लीग ने हमें मंच दिया, उद्देश्य दिया और आत्मविश्वास दिया। यहीं से हमारी यात्रा शुरू हुई।”
अंशु, जो बारहवीं की छात्रा हैं और जिनके पिता एक छोटी सी मिठाई की दुकान चलाते हैं, ने पुणे में अंडर-14 राष्ट्रीय प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीतकर शुरुआत की। सलोनी, एक ठेला चलाने वाले की बेटी, अब गर्व से बताती हैं कि वह मलेशिया में हुए एशियन रग्बी चैंपियनशिप में भारत की अंडर-18 टीम की कप्तान रह चुकी हैं। वहीं अल्पना — जिन्होंने फ्रैक्चर कॉलरबोन और एक गंभीर सड़क दुर्घटना जैसी कई चोटों से उबरते हुए वापसी की और मैदान पर मजबूती से खड़ी रहीं। उन्होंने यह दिखा दिया कि साहस किसी भी बाधा को पार कर सकता है।
अल्पना ने कहा, “यह स्वर्ण पदक सिर्फ हमारा नहीं है। यह हर उस लड़की का है जो सीमाओं से परे सपने देखने की हिम्मत करती है। यह हर उस माता-पिता के लिए है जिन्होंने हमारा साथ दिया, और हर उस कोच के लिए जिन्होंने हम पर विश्वास किया।”
खेलो इंडिया यूथ गेम्स भी अब युवाओं के लिए एक अहम लॉन्चपैड बन चुके हैं। अंशु, सलोनी और अल्पना जैसे खिलाड़ियों के लिए केआईबाईजी का एक मेडल केवल एक उपलब्धि नहीं, बल्कि राष्ट्रीय कैंपों, सरकारी नौकरियों और दीर्घकालिक पहचान की संभावनाओं का रास्ता है।
लड़कियों ने कहा, “हमने अपने सीनियर्स को मेडल जीतने के बाद सरकारी नौकरी पाते देखा है। वही हमारा सपना है। हमें उम्मीद है कि यह स्वर्ण हमें उस लक्ष्य के और करीब ले जाएगा।” इसके बाद तीनों लड़कियां ओडिशा को हराकर स्वर्ण पदक जीतने वाली लड़कों की टीम के साथ जश्न में शामिल हुईं।
बिहार रग्बी के लिए इस ऐतिहासिक दिन पर, तालियों, आंसुओं और उत्सव के बीच यह संदेश जोर से और स्पष्ट था — यह तो बस शुरुआत है। अस्मिता नींव बन चुकी है, केआईबीईजी ने मंच दे दिया है — अब बिहार की बेटियां उस भविष्य की ओर दौड़ रही हैं, जो संभावनाओं से भरा हुआ है।