तीसरे चरण में कांग्रेस की होगी अग्नि परीक्षा, कांग्रेस फिसली तो नीतीश-BJP को मिल जाएगी बढ़त

11/6/2020 1:29:45 PM

 

पटनाः बिहार की सत्ता पर पकड़ बनाने के लिए नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए और तेजस्वी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में कांटे की टक्कर चल रही है। बिहार में सत्ता की रेस में तेजस्वी यादव तभी नीतीश कुमार से आगे निकल सकते हैं। जब महागठबंधन में शामिल कांग्रेस पार्टी अच्छा प्रदर्शन करे।

बिहार के अंतिम चरण के चुनाव में कांग्रेस के सामने खुद को साबित करने की कठिन चुनौती है। इस चरण में कांग्रेस पार्टी के आधे विधायकों की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है। पिछले चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने 27 सीटों पर जीत का परचम लहराया था, लेकिन चुनाव में कांग्रेस की चार सीटिंग सीटें सहयोगी दलों के खाते में चली गई, लिहाजा पार्टी के खाते में जो 70 सीटें इस बार आई हैं उनमें 23 पर ही कांग्रेस के सीटिंग विधायक हैं। इन 23 विधायकों में सबसे ज्यादा 11 सीटों पर विधानसभा चुनाव इसी चरण में है। तीसरे चरण के चुनाव में कांग्रेस के 26 उम्मीदवार मैदान में हैं। अंतिम चरण के चुनाव में कोसी-सीमांचल में अल्पसंख्यक बहुल सीटें कांग्रेस के पास ज्यादा हैं। पार्टी ने इन क्षेत्रों से नौ मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा है। इन नौ उम्मीदवारों में छह ऐसे हैं जो 2015 में चुनाव जीत कर सदन तक पहुंचे थे। साथ ही कांग्रेस ने तीन नए लड़ाकों को भी इस चरण में टिकट दिया है, हालांकि इन सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन भी चुनाव मैदान में है, लिहाजा कांग्रेस के लिए इन सीटों को फिर से अपने कब्जे में रखना एक बड़ी चुनौती होगी।

अंतिम चरण में कांग्रेस की सीटिंग सीटों में से नरकटियागंज, रीगा, बेनीपट्टी, अररिया और बहादुरगंज शामिल है। वहीं किशनगंज, अमौर, कस्बा, कदवा, मनिहारी और कोढ़ा सीट पर भी कांग्रेस के सामने सीटिंग सीटों को बचाए रखने की चुनौती है। तीसरे चरण में इन सीटों पर पिछले चुनाव के मुकाबले समीकरण बदल चुके हैं, 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस,आरजेडी और जेडीयू साथ मिलकर चुनाव लड़े थे। ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों के सामने बीजेपी के कैंडिडेट थे तो कहीं एलजेपी से भी कांग्रेस की टक्कर हुई थी। आरजेडी और जेडीयू के एक साथ चुनाव लड़ने की वजह से कांग्रेस के पास एक बड़ा सामाजिक आधार था। यही वजह थी कि कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 2015 के चुनाव में 64 फीसदी रहा था। कांग्रेस ने 41 में 27 सीटों पर जीत का परचम लहरा दिया था, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में सियासी समीकरण पूरी तरह से बदल चुका है। इस बार कांग्रेस को बीजेपी-जेडीयू-हम और वीआइपी पार्टी के एकजुट गठबंधन का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए कांग्रेस के कैंडिडेट के सामने पिछले चुनाव के प्रदर्शन को दोहराने की कठिन चुनौती है।

कांग्रेस के कैंडिडेट के लिए ओवैसी-कुशवाहा और बीएसपी का गठजोड़ भी मुश्किलें खड़ी कर रहा है। इसके अलावा लोजपा के उम्मीदवार भी दलित वोट बैंक के बड़े हिस्से पर कब्जा जमाने की रणनीति में जुटे हैं। पिछली बार जीती हुई पांच सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवारों की टक्कर सीधे बीजेपी से है। एक सीट पर जीतनराम मांझी की पार्टी हम तो एक सीट पर वीआईपी के उम्मीदवार से कांग्रेस की टक्कर है। साथ ही पांच सीटों पर पिछले चुनाव के साथी जेडीयू के उम्मीदवार से कांग्रेस के वर्तमान विधायकों की कड़ी टक्कर है।

कांग्रेस के मुस्लिम और दलित वोट बैंक में कुशवाहा-ओवैसी की जोड़ी सेंध लगा रही है। ऐसे में कांग्रेसी कैंडिडेट की पूरी निर्भरता आरजेडी के कैडर कार्यकर्ताओं और वोटों पर बढ़ गई है। जमीन पर पिछले पांच साल में कांग्रेस पार्टी ने संगठन के विस्तार के लिए कुछ खास कोशिश नहीं की है। जमीनी कार्यकर्ताओं और कमजोर संगठन की वजह से कांग्रेस कैंडिडेट के सामने पहाड़ जैसी चुनौती है। वहीं कांग्रेस के सामने बीजेपी और जेडीयू जैसी कैडर बेस्ड पार्टी चुनावी अखाड़े में है। अगर आरजेडी के कैडर वोट कांग्रेस के खाते में ट्रांसफर नहीं हुई तो ‘हाथ’ की ताकत को बचाए रखना आसान नहीं होगा।

कांग्रेस के खाते में 70 सीट गई है। अगर कांग्रेस ने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया तो नीतीश कुमार को हराने का तेजस्वी का ख्वाब धरा का धरा रह सकता है। इसलिए बिहार के अंतिम चरण के चुनाव में कांग्रेस के साथ ही महागठबंधन के उम्मीद पर भी दांव लगी है। अब चुनावी नतीजे ही बताएंगे कि कांग्रेस पिछले प्रदर्शन को बरकरार रख पाएगी या नहीं।

Nitika