West Bengal Election...क्या जंगलमहल की 39 सीट पर BJP को मात दे पाएंगी ममता दीदी?

3/22/2021 2:59:28 PM

 

कोलकाता(विकास कुमार): पश्चिम बंगाल के विधानसभा सीट पर तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी में जोरदार टक्कर चल रही है। ऐसे में जंगलमहल इलाके की सीटों पर भी दोनों पार्टी के बीच कांटे की लड़ाई चल रही है। जंगलमहल इलाके में कुल 39 विधानसभा सीट आती हैं। 39 सीटों पर जीत हार से बंगाल की सियासी तस्वीर बदली जा सकती है। यही वजह है कि जंगलमहल की 39 सीटों के वोटरों को लुभाने के लिए टीएमसी और बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक रखी है।

जंगलमहल के 4 जिलों की सियासी गुणा गणित को दो हिस्सों में बांटकर देख सकते हैं। एक हिस्सा 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले का है तो दूसरा हिस्सा 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से शुरू होता है। अगर बात 2021 के विधानसभा चुनाव की करें तो इसमें 2019 से लेकर 2021 के बीच चले सियासी उठा पटक की अहमियत ज्यादा है। इसलिए कोशिश यही है कि 2019 से 2021 में जंगलमहल की 6 लोकसभा सीट और 39 विधानसभा सीट के रूझान को पकड़ने की क्योंकि इन रुझानों से ही पता चलेगा कि 39 विधानसभा सीट पर बिखरे वोटरों के दिमाग में चल क्या रहा है।

वाम मोर्चा ने बंगाल में लैंड रिफार्म कर जंगलमहल के आदिवासी, खेतिहर मजदूर और दलित समाज का एक जमाने में भरोसा जीत लिया था लेकिन 2011 में यहां तृणमूल ने वाममोर्चा की चमक फीकी कर दी थी, चूंकि जंगलमहल माओवाद से पीड़ित इलाका रहा है। इसलिए 2011 में किशन जी नाम के माओवादी नेता के ममता दीदी का समर्थन करने से तृणमूल को फायदा मिला था, हालांकि बाद में सुरक्षा बलों ने किशन जी को मौत के घाट उतार दिया था। इससे जंगलमहल के इलाके में ममता दीदी की क्रेडिबिलटी पर सवाल खड़ा हो गया, फिर 2018 का पंचायत चुनाव को भी बंगाल की राजनीतिक इतिहास में वाटरशेड यानी एक विभाजक रेखा माना जाता है क्योंकि इसमें सत्ता की ताकत का बेजा इस्तेमाल कर पूरे बंगाल में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को टीएमसी ने किनारे लगा दिया।

2019 में दीदी पर पहली बार फूटा था बंगाल की जनता का गुस्सा
बंगाल की जनता का ये गुस्सा 2019 में दीदी पर पहली बार फूटा था। ना केवल जंगलमहल बल्कि पूरे पश्चिम बंगाल में लोगों ने टीएमसी के बरक्श बीजेपी को एक प्रबल विरोधी दल के तौर पर खड़ा कर दिया था। बीजेपी ने लोकसभा की 18 सीटें जीत ली। वहीं जंगलमहल की 6 में से 5 सीट बीजेपी के खाते में चली गई। हालांकि 2019 में बीजेपी का बंगाल की जमीन पर कोई बड़ा संगठन नहीं था, लेकिन बंगाल का ये इतिहास रहा है कि अगर जनता मन बना लेती है तो वह ना तो संगठन की ताकत को देखती है ना ही कैंडिडेट को बस पार्टी को वोट दिया जाता है। जब वाम मोर्चा सत्ता में आई थी तब भी पूरे बंगाल में उनका बेस नहीं था और जब दीदी सत्ता में आईं तब भी उनका संगठन इतना बड़ा नहीं था, यानी बंगाल की जनता एक बार मन बना लेती है तो वह बिना लोकल चेहरे और संगठन के भी बदलाव ला देती है।

2019 के लोकसभा चुनाव से जंगलमहल के वोटरों ने चेंज कर लिया गियर
2019 के लोकसभा चुनाव में यही लहर एक बार फिर बीजेपी के पक्ष में नजर आया था और जंगलमहल में अचानक से बीजेपी का वोट शेयर टीएमसी और सीपीएम से भी ज्यादा हो गया था। 2019 के लोकसभा चुनाव से जंगलमहल के वोटरों ने गियर चेंज कर लिया है। अगर ये ट्रेंड बरकरार रहा तो ममता दीदी का सपना जंगलमहल के सियासी जंगल में खो सकता है। बदलाव की लहर भांप कर ममता दीदी ने कई अहम फैसले भी लिए हैं। ममता दीदी ने चत्रधर महतो को जेल से रिहा कर तृणमूल के संगठन में अहम भूमिका सौंपी थी। साथ ही महतो जाति को आदिवासी का दर्जा दिलाने का वादा भी मेनिफेस्टो में दीदी ने किया है। इसके अलावा आदिवासी और दलित परिवार को हर महीने एक हजार रुपए की मदद देने का वादा भी ममता बनर्जी ने किया है। वहीं बीजेपी भी किसी भी सूरत में 2019 के चुनावी बढ़त को खोना नहीं चाहती है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जंगलमहल इलाके में एम्स बनाने का वादा किया है। इसके अलावा बीजेपी ने जंगलमहल विकास बोर्ड बनाकर इलाके में तरक्की करने का वादा किया है। एक्सप्रेस वे और सेमी एक्सप्रेस वे के जरिए जंगलमहल और कोलकाता के बीच फास्ट ट्रांसपोर्टेशन मुहैया कराने का भरोसा भी बीजेपी ने दिलाया है। साथ ही जंगलमहल के इलाके को नक्सल मुक्त करने का वादा बीजेपी और टीएमसी ने अपने अपने हिसाब से किया है।

साफ है कि जंगलमहल की 39 सीटों पर सीधी चुनावी टक्कर तृणमूल और बीजेपी के बीच ही चल रही है। सीपीएम-कांग्रेस और फुरफुरा शरीफ तीसरा कोण बनाने में भी सफल नहीं हो पा रहे हैं। इस इलाके की 39 सीटों पर कौन किसे मात देगा। ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

Content Writer

Nitika