गांधी परिवार ने प्रधानमंत्री नहीं बनाकर प्रणब दा के साथ की थी नाइंसाफी, मनमोहन सिंह ने भी मानी थी भूल

8/31/2020 7:21:36 PM

 

जालंधर( विकास कुमार): प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेहद खासमखास रहे थे प्रणब मुखर्जी इंदिरा गांधी के दौर में प्रणब मुखर्जी कैबिनेट में नंबर दो की हैसियत रखते थे लेकिन इंदिरा गांधी की मौत के बाद तो जैसे प्रणब मुखर्जी के लिए पूरी दुनिया ही बदल गई।

इंदिरा गांधी के बाद उनके बेटे राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाया गया। खुद प्रणब दा ही चाहते थे कि राजीव गांधी प्रधानमंत्री बनाए जाएं लेकिन राजीव गांधी के करीबियों ने प्रणब दा के खिलाफ उनके मन में जहर बो दिया। बताया जाता है कि राजीव गांधी के कुछ करीबी चाहते थे कि उप राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ही उन्हें प्रधानमंत्री पद का शपथ ग्रहण करवा दें लेकिन प्रणब मुखर्जी ने अपनी सलाह में इस फैसले का विरोध किया। उन्होंने उस वक्त यही सलाह दी थी कि राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ और गोपनियता राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से ही लेना चाहिए क्योंकि संविधान में प्रधानमंत्री पद का शपथ दिलाने का अधिकार केवल राष्ट्रपति को है। संवैधानिक तौर पर होना भी यही चाहिए था और हुआ भी यही राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने ही राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई लेकिन राजीव गांधी के करीबी उन्हें ये समझाने में कामयाब रहे कि प्रणब दा की मंशा कुछ और है। यही वजह है कि राजीव गांधी ने प्रणब मुखर्जी को अपने कैबिनेट में भी नहीं लिया और प्रणब मुखर्जी को पार्टी से बाहर का दरवाजा दिखा दिया।

राजीव गांधी के कुछ करीबी नेता ‘प्रणब मुखर्जी’ को ‘रूटलेस वंडर’ कहते थे। राजीव गांधी के कई करीबी नेता ये तो मानते थे कि प्रणब मुखर्जी का जनाधार नहीं है, लेकिन फिर भी उनमें एक करिश्मा है, लगता है प्रणब मुखर्जी के इसी वंडर की वजह से राजीव गांधी के दौर के कांग्रेस के कई नेताओं ने उन्हें पार्टी से बाहर करवा दिया लेकिन इतना तो जरुर कहा जा सकता है कि प्रणब मुखर्जी के साथ उस दौर में न्याय नहीं किया गया।

भले ही प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस से बाहर कर दिया गया हो लेकिन ये उनकी क्षमता ही थी कि राजीव गांधी को खुद उन्हें कांग्रेस में वापस लाना पड़ा। बताया जाता है कि बोफोर्स प्रकरण को लेकर राजीव गांधी चौतरफा घिर गए थे। ऐसे में उन्होंने बतौर संकटमोचक प्रणब मुखर्जी की मदद ली। इसके बाद प्रणब मुखर्जी को सम्मान सहित कांग्रेस में वापस लाया गया।

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद जो सरकार बनी वह पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में बनी राव ने एक बार फिर प्रणव मुखर्जी को कैबिनेट में वापस जगह दी थी।

2004 में जब कांग्रेस ने सरकार बनाई तब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया था। सबको उम्मीद थी कि सोनिया गांधी कांग्रेस के सीनियर मोस्ट लीडर प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री पद के लिए समर्थन देंगी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और यही वजह है कि कांग्रेस और खास कर गांधी परिवार पर प्रणब मुखर्जी को इग्नोर करने का आरोप लगा।

2004 में सोनिया गांधी ने डॉक्टर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद के लिए नोमिनेट किया। ऐसा करते हुए सोनिया गांधी ने प्रणब मुखर्जी की वरिष्ठता को नजरअंदाज कर दिया खुद प्रणब मुखर्जी कांग्रेस में और सरकार में मनमोहन सिंह से सीनियर थे। ये वास्तविकता है कि जब इंदिरा गांधी सरकार में प्रणब दा वित्त मंत्री थे तब उन्होंने मनमोहन सिंह को रिजर्व बैंक का गवर्नर बनाया था लेकिन 2004 में अब प्रणब मुखर्जी को ही डॉक्टर मनमोहन सिंह के मातहत होकर बतौर कैबिनेट मंत्री काम करना पड़ा। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या गांधी परिवार के सलाहकारों को ये उम्मीद थी कि अपनी वरिष्ठता का ख्याल कर खुद प्रणब मुखर्जी सरकार से अलग हो जाएंगे क्योंकि अपने जूनियर नेता के तहत काम करना उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाएगा। भले ही मन से प्रणब दा आहत हों लेकिन उन्होंने परिपक्वता दिखाते हुए सोनिया गांधी और कांग्रेस को आलोचना से बचा दिया। प्रणब दा ने मंत्री पद स्वीकार किया और विपक्ष को इस मुद्दे पर राजनीति करने का मौका नहीं दिया।

अब ये सवाल आपके मन में उठता होगा कि आखिर क्यों सोनिया गांधी ने प्रणव मुखर्जी को प्रधानमंत्री पद के लिए नोमिनेट नहीं किया। दरअसल इसके पीछे दो बड़ी शंका थी जो सोनिया गांधी के मन के किसी कोने में छुपी हुई थी। एक तो खुद राजीव गांधी द्वारा प्रणब मुखर्जी को पार्टी से बाहर करने की घटना सोनिया गांधी के मन में रही होगी। वहीं दूसरा कारण नरसिम्हा राव का रवैया भी रहा होगा। दरअसल जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने सोनिया गांधी को पार्टी और सरकार में वो अहमियत नहीं दी थी, जिसकी वो हकदार थीं। 2004 में कहीं ना कहीं सोनियां गांधी की ये सोच रही होगी कि कहीं ऐसा ना हो जाए कि राजनीति और तजुर्बे के लिहाज से बहुत ताकतवर माने जाने वाले प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बाद दस जनपथ को भाव ही ना दे जबकि मनमोहन सिंह को लेकर ये शंकाएं नहीं थी। मनमोहन सिंह पहले तो एक टेक्नोक्रेट थे और दूसरी तरफ उनका कोई जनाधार नहीं था। इसलिए कभी भी डॉक्टर मनमोहन सिंह गांधी परिवार को सुपरसीड नहीं कर सकते थे।

यानी एक बार फिर भरोसे की जंग में प्रणब मुखर्जी हार गए और उन्हें अपने से कहीं जूनियर नेता के तहत मंत्री पद स्वीकार करना पड़ा।

कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी ने भले ही प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री पद के लिए नोमिनेट नहीं किया लेकिन 2012 में उन्होंने भूल सुधार कर प्रणब दा को भारत के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का ऐलान किया, हालांकि इसके पीछे दो थ्योरी थी। एक तो खुद 2004 से लेकर 2012 आते आते सोनिया गांधी और प्रणब मुखर्जी के बीच एक भरोसा कायम हो गया था और 2012 में राष्ट्रपति पद के लिए प्रणब मुखर्जी का नाम आगे करने में अब उन्हें कोई दिक्कत नहीं थी। वहीं एक दूसरी थ्योरी ये है कि कई वामपंथी नेताओं ने सोनियां गांधी से इस बात का आग्रह किया था कि वे प्रणब दा का नाम राष्ट्रपति पद के लिए आगे करें, खैर 2012 से 2017 तक राष्ट्रपति पद को प्रणब दा ने सुशोभित किया।

हालांकि राजनीतिक गलियारे में इस बात की चर्चा हमेशा रही कि प्रणब दा के दिल में प्रधानमंत्री ना बनने की एक टीस हमेशा रही और उन्होंने अपने इस खलिस का इजहार करने का एक दूसरा और बेहद कारगर तरीका तलाश निकाला। जब कांग्रेस के कई दिग्गज नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना कर रहे थे, तब कई बार प्रणब मुखर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ कर इन आलोचनाओं की हवा निकाल दी। वैसे भी प्रणब मुखर्जी का नाम देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न के लिए बीजेपी सरकार ने ही प्रस्तावित किया था। जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न से सम्मानित किया था। तब गांधी परिवार का एक भी सदस्य इस समारोह में शामिल तक नहीं हुआ। जबकि राहुल गांधी को राष्ट्रपति भवन द्वारा समारोह के लिए आमंत्रित भी किया गया था। इस घटना से साफ है कि गांधी परिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ प्रणब मुखर्जी का मधुर संबंध स्वीकार नहीं था। वहीं संघ परिवार के मुख्यालय नागपुर में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के जाने का कांग्रेस के कई नेताओं ने विरोध किया था। इस तरह से ऐसे कई मौके आए जब प्रणब मुखर्जी ने खुद के साथ हुई नाइंसाफी का गांधी परिवार को अपने तरह से करारा जवाब दिया।

प्रणब दा के साथ जो नाइंसाफी गांधी परिवार ने की थी। उसका अंदाजा तो खुद पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह को भी था। प्रणब दा की किताब 'द कोलिशन इयर्स' के विमोचन समारोह में खुद मनमोहन सिंह ने अपने मन की बात कही थी। मनमोहन सिंह ने कहा था कि

‘पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी प्रधानमंत्री पद के लिए उनसे बेहतर उम्मीदवार थे पर सोनिया गांधी ने मुझे चुना। प्रधानमंत्री बनने के अलावा मेरे पास कोई भी विकल्प नहीं बचा था। प्रणब दा अपनी मर्जी से राजनेता बने थे लेकिन मेरा राजनेता बनना एक इत्तेफाक था।‘
 

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