West Bengal Election... नादिया में बीजेपी से पार पाने के लिए जूझ रही है टीएमसी
4/17/2021 9:43:28 AM
कोलकाता(विकास कुमार): पश्चिम बंगाल में पांचवें चरण के तहत छह जिलों की 45 सीटों पर 17 अप्रैल को वोटिंग हो रही है। नादिया जिले की 8 विधानसभा सीटों पर भी पांचवें चरण में मतदान जारी है। शांतिपुर, राणाघाट उत्तर-पश्चिम, कृष्णगंज, राणाघाट उत्तर-पूर्व और रानाघाट दक्षिण, चकदाह, कल्याणी और हरिंगाटा में वोटिंग जारी है। आइए इन 8 विधानसभा सीट के समीकरण पर डालते हैं एक नज़र।
नादिया जिले में 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बहुत बड़ी बढ़त ली थी। राणाघाट लोकसभा सीट नादिया जिले में आता है। राणाघाट लोकसभा सीट पर 2019 के चुनाव में बीजेपी कैंडिडेट जगन्नाथ सरकार को 52.78 फीसदी वोट मिले थे। वहीं टीएमसी कैंडिडेट रूपाली विश्वास को महज 37.05 फीसदी वोट ही मिल पाया था। जगन्नाथ सरकार को कुल 7 लाख 83 हजार 253 वोट मिला था। वहीं रूपाली विश्वास को 5 लाख 49 हजार 825 वोट ही मिल पाया था। इस लिहाज से बीजेपी कैंडिडेट जगन्नाथ सरकार ने टीएमसी कैंडिडेट रूपाली विश्वास को 2 लाख 33 हजार 428 वोटों के बड़े अंतर से हराया था। इस हिसाब से 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने नादिया जिले की कुल 17 विधानसभा सीटों में से 11 पर लीड कायम कर ली थी। वहीं टीएमसी 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के इस लीड को काटने की कोशिश कर रही है, तो बीजेपी 2019 के लोकसभा चुनाव की लीड को आगे भी बढ़ाना चाहती है।
नादिया जिले में हिंदुओं की आबादी 72.20 फीसदी है। वहीं मुस्लिमों की आबादी इस जिले में 26.8 फीसदी है। नादिया जिले में अनुसूचित जाति की आबादी 29.9 फीसदी और एसटी की आबादी 2.7 फीसदी है। यानी नादिया जिले में अनुसूचित जाति और जनजाति की कुल मिलाकर आबादी 32.6 फीसदी है। यानी एससी और एसटी वोटर नादिया जिले की 17 विधानसभा सीटों के नतीजे तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
नादिया जिले में बांग्लादेश से आए शरणार्थी हिंदुओं का दबदबा है। माहिष्य, ग्वाला घोष और भद्र लोक की आबादी भी ठीक ठाक है। नामशूद्र या मतुआ दलित समाज के लोग बांग्लादेश से जान और इज्जत बचाते हुए पश्चिम बंगाल में आकर बस गए थे। इसके अलावा नादिया में लोकल मुस्लिमों की आबादी है। अनुसूचित जाति में तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ सेंटिमेंट है। ये सेंटिमेंट विधानसभा चुनाव में भी बड़ा असर दिखा सकता है। दीदी के रणनीतिकार प्रशांत किशोर की जो कथित क्लब हाउस चैट वायरल हुई थी। उससे भी ये पता चलता है कि बंगाल के अनुसूचित जाति तृणमूल के साथ इस बार खड़े नहीं हैं। वहीं नादिया जिले में मतुआ समुदाय के वोटर बड़ी संख्या में रहते हैं। मतुआ समाज बीजेपी के साथ खड़ा दिख रहा है, क्योंकि उन्हें बीजेपी ने सीएए के जरिए स्थायी नागरिकता देने का वादा किया है। वहीं टीएमसी ने सीएए का विरोध कर मतुआ समाज को नाराज कर दिया है। यही वजह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में नादिया जिले में टीएमसी की सियासी जमीन दरक गई है।
मतुआ वोटर्स, हिंदु-मुस्लिम, अवैध घुसपैठ, सिटिजनशिप और एंटी इनकम्बेंसी के मुद्दे पर बीजेपी टीएमसी को घेरने में लगी है। बीजेपी ने अवैध घुसपैठियों को बाहर करने का वादा भी किया है। चूंकि नदिया जिले की सीमा बांग्लादेश बॉर्डर से लगती है इसलिए यहां अवैध घुसपैठ तो पहले से हो रही है, जो लोग अवैध तौर पर पश्चिम बंगाल में घुसे हैं, वे अपने कागजात भी बनवा चुके हैं। बीजेपी घुसपैठियों को बाहर करने की बात कर रही है इससे स्थानीय तबका खुश दिख रहा है। इसके अलावा 2018 में पंचायत चुनाव में सत्ताधारी दल के आतंक की वजह से लोग वोट तक नहीं डाल पाए थे। इससे ग्राउंड पर टीएमसी की छवि बहुत बिगड़ गई थी और 2019 में एकाएक आधी लोकसभा सीटें टीएमसी हार गई।
वहीं हरिंगाटा सीट में इंडियन सेकुलर फ्रंट के लीडर अब्बास सिद्दीकी का भी थोड़ा बहुत असर है। वे भी टीएमसी के वोट बैंक में सेंध लगा रहे हैं। इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है। इस बार बीजेपी के नेताओं का जोर नादिया जिले में अपनी सियासी ताकत बढ़ाने पर है। वहीं ममता दीदी अपनी खोई सियासी जमीन वापस पाने के लिए तड़प रहे हैं, लेकिन ऐसा कर पाना टीएमसी के लिए नामुमकिन सी लगने वाला टास्क लग रहा है।