क्या पुत्रमोह में लालू यादव भूल गए 32 साल पुरानी दोस्ती?

9/10/2020 6:47:07 PM

 

पटनाः रघुवंश प्रसाद सिंह ने दिल्ली के एम्स से सादे कागज में लिखकर अपना इस्तीफा आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को भेज दिया है। रघुवंश बाबू ने 32 साल तक लालू प्रसाद से दोस्ती निभाई। एक वक्त में आरजेडी के सबसे बड़े सवर्ण चेहरे के तौर पर रघुवंश बाबू को पेश किया जाता था। ये दोस्ती दोनों तरफ से थी। लालू प्रसाद ने भी रघुवंश प्रसाद सिंह का मान रखा था। आरजेडी में बहुत कम नेता हैं जो लालू प्रसाद के सामने खुलकर बोल सकते थे। रघुवंश बाबू का नाम उन नेताओं में शुमार किया जाता था जो लालू प्रसाद से खुल कर मन की बात कह सकते थे। रघुवंश प्रसाद ने भी हमेशा लालू यादव से दोस्ती निभाई। यूपीए 2 में कैबिनेट में शामिल होने के ऑफर को भी उन्होंने लालू प्रसाद से दोस्ती के कारण ठुकरा दिया था। उसके बाद से आज तक रघुवंश प्रसाद सिंह दोस्ती और लालू यादव की खुशी के खातिर समझौता ही करते रहे। आखिरकार रामा सिंह के मुद्दे पर वे भारी मन से उस पार्टी को छोड़कर चले गए जिसके लिए उन्होंने बहुत त्याग किया था।

दो ऐसे मुद्दे थे जिसको लेकर रघुवंश बाबू खफा चल रहे थे। पहला मुद्दा जगदानंद सिंह को आरजेडी का प्रदेश अध्यक्ष बनाने का था। जगदा बाबू को ज्यादा तरजीह मिलने से कहीं ना कहीं रघुवंश बाबू के दिल में टीस उभरी थी। उन्हें लगा था कि लालू प्रसाद शायद उनसे ज्यादा भरोसा जगदा बाबू पर जता रहे हैं। फिर भी इस टीस को रघुवंश बाबू ने जहर का घूंट समझ पी लिया लेकिन इस बार रामा सिंह को तेजस्वी यादव के करीब जाता देख उनके सिर से पानी ऊपर निकल गया। रामा सिंह एक बाहुबली नेता हैं, जिनकी पुरानी अदावत रघुवंश प्रसाद सिंह से रही है। रघुवंश सिंह का कहना था कि किसी भी कीमत पर रामा सिंह को आरजेडी में इंट्री नहीं दी जाए। वक्त का फेर देखिए कि कभी रामा सिंह, लालू यादव के विरोध में बोलते थे और उस वक्त रघुवंश प्रसाद सिंह, लालू यादव के सपोर्ट में चट्टान की तरह खड़े नजर आते थे लेकिन आज रामा सिंह के चक्कर में पार्टी में रघुवंश सिंह खुद को अलग थलग महसूस करने लगे थे और आखिरकार उन्होंने दोस्ती और पार्टी को त्याग करने का फैसला कर लिया।

आखिर सब के मन में ये सवाल जरूर उठता होगा कि आखिर रामा सिंह की ऐसी क्या जरूरत एकाएक लालू प्रसाद यादव को पड़ गई कि उन्होंने अपने पुराने दोस्त को भी अपने पाले से फिसल जाने दिया। दरअसल तेजस्वी यादव की विधानसभा सीट को सुरक्षित करने के लिए लालू यादव ने रामा सिंह को साथ मिलाने की रणनीति पर मुहर लगाई। अगर आप राघोपुर विधानसभा सीट के जातिगत गुणा गणित पर नजर दौड़ाएंगे तो आपको इसकी वजह समझ में आ जाएगी।

अब आप समझ गए होंगे कि तेजस्वी यादव के लिए रामा सिंह का साथ लेना क्यों जरूरी हो जाता है क्योंकि परंपरापरगत तौर से राजपूत जाति का समर्थन बीजेपी और जेडीयू को मिलता रहा है। राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ को तवज्जो देने से भी राजपूतों का रूझान बीजेपी के पक्ष में हुआ है। ऐसे में अगर राजपूतों को तेजस्वी अपने पाले में नहीं लाएंगे तो राघोपुर में उनकी विजय रथ का पहिया टूट सकता है।

अब आप लोग ये समझ गए होंगे कि आखिर क्यों तेजस्वी किसी भी कीमत पर रामा सिंह को अपने साथ लाना चाहते हैं। इसलिए ये कहना गलत नहीं होगा कि तेजस्वी यादव की जीत के रास्ते के रोड़े को हटाने के लिए लालू प्रसाद यादव ने दोस्ती से समझौता कर लिया है। अब आने वाले वक्त में पता चल पाएगा कि आरजेडी परिवार से बिछड़कर रघुवंश बाबू कहां अपना नया घर तलाशेंगे।
 

Nitika