West Bengal Election... पश्चिम बंगाल की 30 सीटों पर हुआ 84.37 फीसदी वोटर टर्नआउट

4/2/2021 1:36:09 PM

कोलकाता(विकास कुमार): पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में 30 विधानसभा सीटों पर छिटपुट हिंसा के बीच पहले चरण की तरह ही बंपर वोटिंग दर्ज की गई है। चुनाव आयोग के मुताबिक, दूसरे चरण में 30 सीटों पर औसतन 84.37 फीसदी वोटर टर्नआउट दर्ज किया गया है। बांकुड़ा जिले की 8 सीट पर औसतन 84.75 फीसदी वोटर टर्नआउट रहा है। वहीं पश्चिमी मेदिनीपुर की 9 सीट पर औसतन 81.69 फीसदी वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है तो पूर्वो मेदिनीपुर की 9 सीट पर भी औसतन 87.02 फीसदी मतदान दर्ज किया गया है। वहीं साउथ 24 परगना जिले की 4 सीट पर औसतन 83.93 फीसदी मतदान हुआ है। पश्चिम बंगाल की सबसे हाई प्रोफाइल सीट बनकर उभरे नंदीग्राम में भी रिकार्ड मतदान दर्ज किया गया है। चुनाव आयोग के अंतिम आंकड़े के मुताबिक नंदीग्राम में 88.01 फीसदी का बंपर मतदान हुआ है।

बंपर मतदान से नतीजे पर पड़ने वाले असर को लेकर कई तरह की राय है। बीजेपी जहां इस बंपर वोटिंग को ममता बनर्जी के खिलाफ मैंडेट बता रही है। वहीं टीएमसी बंपर मतदान को ममता बनर्जी के पक्ष में चल रही लहर का प्रतीक मान रही है। गौर करें तो हमेशा से पश्चिम बंगाल की जनता राजनीतिक रूप से बेहद सजग और सक्रिय मानी जाती है। पश्चिम बंगाल में लंबे समय से पार्टी सोसायटी का चलन रहा है। बंपर मतदान के पीछे इस पार्टी सोशायटी कल्चर का भी बड़ा योगदान है।

पश्चिम बंगाल के लिए 80 फीसदी वोटिंग कोई नई बात नहीं है, लेकिन बंगाल में वोटिंग पर्सेंटेज में 2 से 4 फीसदी का उतार-चढ़ाव भी बड़ा सियासी उलटफेर कर देता है। दीदी की भाषा में बोलें तो दो से चार फीसदी के उतार चढ़ाव से 'खेला' हो जाता है। इसके लिए थोड़ा पीछे झांकने की जरुरत है। 2011 के बंगाल विधानसभा चुनाव में 84.7 फीसदी टर्नआउट दर्ज किया गया था। इन चुनावी नतीजों से लेफ्ट की सत्ता ध्वस्त हो गई थी। वहीं 2016 के विधानसभा चुनाव में वोटर टर्नआइट 2011 की तुलना में कम हुआ था। 2016 के विधानसभा चुनाव में कुल 81.9 फीसदी टर्नआउट रहा था और एक बार फिर कोलकाता के सिंहासन पर ममता दीदी का कब्जा हो गया था। वहीं 2021 के विधानसभा चुनाव में पहले चरण में 30 सीटों पर 84.6फीसदी वोटिंग हुई है, तो दूसरे चरण के लिए 30 सीटों पर हुई वोटिंग में टर्नआउट 84.37 फीसदी रहा है, यानी 2016 की तुलना में अभी तक तीन फीसदी ज्यादा मतदान हुआ है। इस तीन फीसदी बढ़े वोट का मतलब अगर सत्ता विरोधी लहर है तो ये ममता दीदी की मुश्किलें बढ़ाने वाली खबर है।

2011 की तुलना में अब तक के दोनों चरणों में ज्यादा वोटिंग ममता बनर्जी के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। ममता बनर्जी अपने पॉलिटिकल कैरियर के सबसे कड़े मुकाबले में फंसी हुई है। यहां तक कि ममता बनर्जी की अपनी सीट नंदीग्राम में भी स्थिति थोड़ी कमजोर नजर आई है। एक पोलिंग बूथ पर दो घंटे तक बैठने से उनकी खीझ के लेभल का पता चलता है। दीदी नंदीग्राम में चुनाव वाले दिन से पांच दिन पहले से ही खूंटा गाड़े बैठी थीं, लेकिन चुनाव वाले दिन ममता बनर्जी के एक्शन से उनके घटते आत्मविश्वास का पता चलता है। दरअसल किसी मुख्यमंत्री का एक पोलिंग बूथ पर दो घंटे तक बैठना ही एक ऐसा अजूबा है, जिसके बारे में शायद ही किसी ने इससे पहले देखा या सुना हो।

पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में इस बार दीदी के कथित तुष्टीकरण की नीति और बीजेपी के जय श्री राम के नारे के बीच सीधी टक्कर है। कई बार तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने बहुसंख्यक समाज को लेकर अभद्र और अमर्यादित टिप्पणी की है। यहां तक कि एक बार इसे 30 बनाम 70 की लड़ाई भी बताया गया था, यानी पोलराइजेशन और काउंटर पोलराइजेशन इस बार बंगाल की सियासी दशा- दिशा तय करने वाला है। अभी तक दीदी मुस्लिम वोटरों का पोलराइजेशन कर लेती थीं। शायद इस बार भी ममता दीदी मुस्लिम वोटरों के बड़े हिस्से को तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में पोलराइज करने में सफल रही हैं, लेकिन इस के काट के लिए बीजेपी हिंदू वोटरों का काउंटर पोलराइजेशन करने में एक हद तक कामयाब रही है, यानी बंपर वोटिंग को कम्युनल लाइन पर भी आंकें तो बीजेपी को थोड़ी बढ़त मिलती दिख रही है, लेकिन अभी छह चरण का मतदान बाकी है। ममता दीदी की रणनीति तैयार करने वाले प्रशांत किशोर ने खुद ये संकेत दिया है कि पांचवें, छठे और सातवें चरण में टीएमसी कमाल करेगी। इसलिए धैर्य से देखिए आगे आगे होता है क्या, हालांकि दो मई को ही पता चल पाएगा कि ‘खेला होबे’ या ‘खेला शेष होबे’ में से कौन सा दावा सही साबित हुआ।

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Nitika