सुप्रीम कोर्ट ने सीता सोरेन के तर्कों को माना गलत, बाबूलाल मरांडी ने अदालत के इस फैसले को बताया ऐतिहासिक

3/4/2024 5:48:50 PM

Ranchi: सुप्रीम कोर्ट ने सीता सोरेन के तर्कों को गलत माना है। आज सर्वोच्च अदालत ने अपने ऐतिहासिक फैसले में न सिर्फ सीता सोरेन के तर्कों को गलत माना है बल्कि 1998 के 5 जजों के फैसले को भी पलट दिया है। वहीं, इस पर भारतीय जनता पार्टी प्रदेश अध्यक्ष सह पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले को ऐतिहासिक बताया है। उन्होंने कहा कि फैसले का स्वागत करता हूं। बाबूलाल मरांडी ने कहा कि यह फैसला झारखंड से जुड़ा हुआ है। 2012 में राज्यसभा चुनाव में खरीद फरोख्त हुआ था और सीता सोरेन के ठिकानों से पैसे की बरामदगी हुई थी। इस मामले को लेकर सीता सोरेन पर अपराधिक मामला दर्ज हुआ था। सीता सोरेन ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील किया था जहां अपील को खारिज किया गया।

मरांडी ने कहा कि इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट गई वहां भी खारिज किया गया। संविधान पीठ गठित किया गया और आज सर्वसम्मत से फैसला सुनाया है। उन्होंने कहा कि वोट के बदले नोट को लेकर आपराधिक मामला बनता है। सीता सोरेन के मामले भी आज यही आया है। सोरेन परिवार यही करता आया है। सोरेन परिवार पूरा भ्रष्टाचार में लिप्त है। साढ़े 4 एकड़ जमीन का मामले में हेमंत सोरेन जेल में हैं। मरांडी ने कहा कि शिबू सोरेन परिवार एमपी-एमएलए बनकर पूरा लूट रहे हैं। सिर्फ झारखंड राज्य ऐसा है जहां पैसा लूटने को लेकर तरह- तरह की तरकीब निकाली जाती है और जब पकड़े जाते हैं तो आरोप केंद्र सरकार पर लगाते हैं। सोरेन परिवार राजनीति सिर्फ पैसा कमाने को लेकर करते है। मरांडी ने कहा कि इनका उद्देश्य जनता की भलाई करना नहीं, सेवा करना नहीं बल्कि लूटना है। राज्यसभा चुनाव में ये लोग पैसा लेकर ही ऐसा करते हैं। वही कल्पना सोरेन के राजनीति में कदम रखने के सवाल पर मरांडी ने कहा कि कोई आए इससे कोई असर नहीं पड़ता है।

क्या है मामला?
ये मामला 2012 राज्यसभा चुनाव का है। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन तब जामा सीट से विधायक थीं। सीता सोरेन पर आरोप लगा कि उन्होंने चुनाव में वोट देने के लिए रिश्वत ली। आपराधिक मामला दर्ज हुआ। सीता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और मामला रद्द करने की मांग की मगर अपील यहां खारिज हो गई। 17 फरवरी, 2014 का वो आदेश था जब रांची हाईकोर्ट ने आपराधिक मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सीता सोरेन ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई और 1998 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जिस तरह उनके ससुर को कानूनी कार्रवाई से छूट मिली थी, देश का संवैधानिक प्रावधान उन्हें भी सदन में हासिल विशेषाधिकार के तहत मुकदमेबाजी से छूट देती है। पिछले साल 20 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमेबाजी से छूट वाले 1998 के फैसले पर फिर से विचार करने की बात की। 1998 का फैसला चूंकि 3:2 की बहुमत से पांच जजों की बेंच ने सुनाया था। इसलिए उस फैसले पर पुनर्विचार कोई बड़ी बेंच ही कर सकती थी। लिहाजा 7 जजों की बेंच का गठन हुआ और उसने अगले ही महीने सुनवाई पूरी कर ली। इस दौरान भारत सरकार का पक्ष सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल, सॉलिसिटर जनरल ने रखा जबकि अदालत की मदद के लिए एमिकस क्यूरी के तौर पर पीएस पटवालिया पेश हुए। वहीं, आज सर्वोच्च अदालत ने अपने ऐतिहासिक फैसले में न सिर्फ सीता सोरेन के तर्कों को गलत माना है बल्कि 1998 के 5 जजों के फैसले को भी पलट दिया है।

Content Editor

Khushi