गृहिणी से मूर्तिकार बनने की कहानी: पति की मौत के बाद प्रेरणा व ममता की अद्भुत मिसाल बनीं माधवी, सरकार के बारे में कही ये बात
Thursday, Sep 18, 2025-03:42 PM (IST)

रांची: झारखंड की राजधानी रांची के कोकर इलाके में रहने वाली महिला मूर्तिकार माधवी पॉल मां दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप देने में लगी हुई है और इसलिए लोगों के आकर्षण का केंद्र वह बनी हुई हैं। वह झारखंड की इकलौती महिला मूर्तिकार हैं, जिनकी जीवन यात्रा साहस, संघर्ष और प्रेरणा से भरी हुई है।
माधवी पॉल मूल रूप से एक गृहिणी थीं। उन्होंने बताया कि उनके पति बाबू पॉल रांची के प्रसिद्ध मूर्तिकार थे, जिन्हें 'बाबू दा' के नाम से जाना जाता था। साल 2012 में अचानक दिल का दौरा पड़ने से बाबू पॉल का निधन हो गया। यह क्षण माधवी के लिए जीवन को बदल देने वाला साबित हुआ। दो बच्चों का भविष्य संवारने और कला की विरासत को बचाने के लिए उन्होंने घर की जिम्मेदारियों के साथ-साथ मूर्तिकला का दायित्व भी उठाया। माधवी ने बताया कि शुरुआती दिनों में उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बाबू पॉल के साथ काम करने वाले सहकर्मियों ने धीरे-धीरे उनका साथ छोड़ दिया। ऐसे में माधवी ने खुद मेहनत और लगन के बल पर मूर्तिकला की बारीकियां सीखीं। आज स्थिति यह है कि दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा, काली पूजा, गणेश उत्सव और विश्वकर्मा पूजा जैसी विधियों में माधवी की मूर्तियों की विशेष मांग रहती है। माधवी ने बताया कि पति की असामयिक मौत के बाद उनके भीतर अचानक एक शक्ति का संचार हुआ और उन्होंने ठान लिया कि बच्चों का भविष्य इसी कला के सहारे बनाएंगी। आज उनका बेटा चेन्नई और बेटी बेंगलुरु में नौकरी कर रही हैं।
माधवी कहती हैं कि उनकी बनाई मूर्तियां ही उन्हें जीवन का सुकून देती हैं, मानो उनमें उनका अपना जीवन बस गया हो। हालांकि, इस सफलता के बावजूद माधवी को एक शिकायत बनी हुई है। उनके अनुसार, जिन मूर्तिकारों की बनाई मूर्तियों की लोग पूजा करते हैं, उन्हें समाज और सरकार की ओर से कोई मान-सम्मान नहीं दिया जाता। वह चाहती हैं कि राज्य में मूर्ति कला और कलाकारों को सम्मान और सहयोग मिले ताकि आने वाली पीढ़ी भी इस क्षेत्र में आगे आ सके। माधवी कहती हैं कि पश्चिम बंगाल में सरकार कारीगरों की मदद करती है, लेकिन झारखंड में ऐसा लगता है कि सरकार हम पर ध्यान नहीं दे रही है। हम किराए की जमीन पर हर महीने किराया देकर मूर्तियां बनाते हैं। सरकार खिलाड़ियों और अन्य कलाकारों को सम्मान और मदद देती है, लेकिन शायद 'मूर्तिकार' सरकार के एजेंडे में हैं ही नहीं।