पेसा नियमावली पर रघुबर दास ने जताई आपत्ति, कहा- मूल भावना के विपरीत है सरकार की नियमावली
Wednesday, Dec 31, 2025-12:03 PM (IST)
Ranchi News: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास ने राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई पेसा नियमावली पर कड़ी आपत्ति जताई है। दास ने भाजपा प्रदेश कार्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सरकार की यह नियमावली पेसा अधिनियम 1996 की मूल आत्मा और प्रावधानों के विपरीत है। उनका आरोप है कि नियमावली को कानून की भावना से इतर तैयार किया गया है।
दास ने कहा कि समाचार पत्रों में प्रकाशित नियमावली के अनुसार ग्राम सभा से आशय अनुसूचित क्षेत्रों में परंपरा से मान्यता प्राप्त व्यक्तियों-जैसे संथाल समुदाय में मांझी-परगना, हो समुदाय में मुंडा-मानकी-दिउरी, खड़िया समुदाय में ढोकलो-सोहोर, मुंडा समुदाय में हातु मुंडा-पड़हा राजा-पहान, उरांव समुदाय में महतो पड़हावेल (राजा)-पहान तथा भूमिज समुदाय में मुंडा-सरदार-नापा-डाकुआ-से लिया गया है। दास ने कहा कि पेसा अधिनियम 1996 की धारा 4 में स्पष्ट रूप से यह प्रावधान है कि पंचायतों से संबंधित राज्य कानून, रूढिजन्य विधियों, सामाजिक-धार्मिक प्रथाओं और समुदायों के पारंपरिक संसाधन प्रबंधन के अनुरूप होंगे। ग्राम सभा का गठन परंपराओं और रूढि़यों के अनुसार होना चाहिए तथा ग्राम सभा को सांस्कृतिक पहचान, पारंपरिक संसाधनों और विवाद निपटारे की परंपरागत प्रणालियों के संरक्षण का अधिकार प्राप्त है।
दास ने सवाल उठाया कि नियमावली में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि ग्राम सभा की अध्यक्षता किस आधार पर होगी। उन्होंने आशंका जताई कि क्या पारंपरिक रूढ़िवादी व्यवस्था को दरकिनार कर अन्य धर्म या संप्रदाय में शामिल हो चुके लोगों को ग्राम सभा अध्यक्ष के रूप में मान्यता दी जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि पेसा कानून के तहत लघु खनिजों, बालू घाटों, जल स्रोतों और वनोपज जैसे सामूहिक संसाधनों के पूर्ण प्रबंधन का अधिकार ग्राम सभा को दिया गया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि नई नियमावली में वास्तव में ये अधिकार ग्राम सभा को मिलेंगे या फिर नियंत्रण पहले की तरह सरकार के पास ही रहेगा। दास ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार कैबिनेट स्तर से नियमावली बनाकर आदिवासी समाज को 'लॉलीपॉप' दिखाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि पेसा कानून का उद्देश्य आदिवासी रूढ़िवादी व्यवस्था को समाप्त करना नहीं, बल्कि उसे कानूनी मान्यता देकर सशक्त बनाना है, ताकि उनकी सांस्कृतिक पहचान, पारंपरिक न्याय प्रणाली और संसाधनों पर नियंत्रण सुनिश्चित हो सके।

