जातीय जनगणना को पिछड़ों की राजनीति का हथियार बनाने की कोशिश में बिहार का प्रतिनिधिमंडल
Monday, Aug 23, 2021-04:26 PM (IST)

पटनाः देश में राजनीति को नया मोड़ देने वाले मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने के तीन दशक के बाद एक बार फिर 'जिसकी जितनी जनसंख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी' की सोच के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से मिलने गई दस पाटिर्यों के प्रतिनिधि पिछड़ों के बूते अपना राजनीतिक आधार बढ़ाने की कोशिश में है।
सरकारी सेवाओं में पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने की मंडल आयोग की सिफारिशों के 90 के दशक में लागू होने के तीन दशक के बाद सामान्य जनगणना के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत गणना कराने की मांग एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से मिलने गए प्रतिनिधिमंडल में शामिल नेताओं में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को छोड़कर सभी एकमत हैं कि केंद्र सरकार यदि इसके लिए तैयार नहीं होती है तो राज्य सरकार को अपने खर्च से बिहार में जातीय गणना जरूर करानी चाहिए।
प्रतिनिधिमंडल में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी, भाजपा से खान एवं भूतत्व मंत्री जनक राम, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, कांग्रेस नेता अजीत शर्मा, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी लेनिनवादी (भाकपा माले) के नेता महबूब आलम, एआईएमआईएम के अख्तरुल इमान, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के नेता सूर्यकांत पासवान और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता अजय कुमार शामिल थे।