बोधगया के इस भवन में भीख मांगने वाले बच्चे सीख रहे विदेशी भाषा, पिछले 11 सालों से निःशुल्क शिक्षा दे रहे मांझी

10/22/2022 12:32:59 PM

गयाः बिहार के गया जिले के बोधगया प्रखंड के बकरौर गांव में पिछले 11 वर्षो से स्थानीय रामजी मांझी महादलित परिवार के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दे रहे हैं। इस स्कूल में हिंदी, अंग्रेजी और तिब्बती भाषा बच्चों को सिखाई जाती हैं। स्कूल में जो बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। वह या तो भीख मांगते थे या चरवाहा का काम किया करते थे। इस विद्यालय के भवन को देख आप सोचने लगेंगे की यह सरकारी विद्यालय है या कोई निजी विद्यालय।

2011 से बच्चो को निःशुल्क शिक्षा दे रहे है मांझी
दरअसल, बोधगया के बकरौर पंचायत के महादलित टोले के पुराने चरवा चारवाहा विद्यालय का भवन है यह भवन बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव ने 1991 में महादलित बच्चों को पढ़ाने के लिए खोला था पर यह ठंडे बस्ते में चली गई तो भवन धीरे धीरे जर्जर होने लगा। इसके बाद बकरौर गांव के रहने वाले मांझी ने वर्ष 2011 में बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने का काम शुरू किया।

मजदूरी करते थे सभी बच्चे
रामजी मांझी ने बताया कि वह स्कूल चलाने से पहले किसी तिब्बती के घर में काम करने के लिए बाहर चले गए थे। धीरे धीरे वह तिब्बती भाषा को पूरी तरह सीख गए। इसके बाद उनकी तिब्बती महिला से शादी हो गई और वह बाहर ही रहने लगे थे। काफी सालों के बाद जब वह वापस अपने गांव में आए तो देखा की महादलित परिवार के बच्चे यहां पर अभी भी देशी शराब का निर्माण तो ईट भट्टे पर मजदूरी करने में जुटे हैं। साथ ही कई बच्चे बोधगया के विभिन्न मंदिरों के सामने विदेशियों से भीख मांगते हैं। इसे देखकर वह गांव में रहने लगे।

विदेशियों को गाइड करने का काम कर सकेंगे बच्चे- मांझी
मांझी ने कहा कि इसके बाद मैंने महादलित परिवार के लोगों को समझाया और उनके बच्चों को निःशुल्क पढ़ाने लगा, जिससे की यह बच्चे आत्मनिर्भर बन सकें। उन्होंने कहा कि जब विदेशियों से यह बच्चे भीख मांग सकते है तो क्यों न इन बच्चों को विदेशी लैंग्वेज सीखा दी जाए। इससे यह बच्चे विदेशियों की मदद कर व गाइड का काम कर सकें। इसके बाद रामजी मांझी ने महादलित परिवार के बच्चो व अभिभावकों से भीख नहीं मांगने की शर्त पर बच्चों को पढ़ाने की बात कहीं। वह बच्चों को हिंदी, अंग्रेजी और तिब्बती भाषा में पढ़ाते हैं। उनके पास करीब 170 बच्चो निःशुल्क शिक्षा ग्रहण कर रहें हैं।

अलग-अलग भाषाएं सीख रहे हैं हम- बच्चे
बच्चों ने कहा कि उनके पिता उन्हें जबरदस्ती ईट भट्ठा पर काम करने के लिए भेजते थे। इसके बाद रामजी मांझी ने हमारे परिजनों को समझाया और आज हम यहां पर पढ़ रहे हैं। कुछ बच्चों ने बताया कि वह पहले भीख मांगते थे, लेकिन अब अलग-अलग भाषाएं सीख रहे हैं।

Content Editor

Swati Sharma